लघुकथा

दाग़

‘देख न कमली ..मेरे सलवार पर कुछ दाग लग गया है’, पहली बार माहवारी आने पर बालिका विद्यालय में पढ़ रही छात्रा कुसुम डरी और सहमी अपनी सहेली से बोली … ‘मैं जल्दी से अपने घर जा रही हूँ नहीं तो सब जान जाएंगे और मेरा मज़ाक उड़ाएंगे’ . ‘अरे ,नहीं रे पगली डरती यों हो हमारा स्कूल तो सरकारी है . आशा दीदी के पास जायेंगे तो वो तुम्हें नैपकिन दे देगीं उसे समझाते हुए कमली बोली’ . ‘अरे नहीं टीचर जी जान जाएँगी और सबको बता देंगी . इसलिए मैं घर जा रही हूँ , साथ में चार दिन की छुट्टी भी की अर्जी भी दे दूंगी . आज लास में जो भी पढ़ाई होगी तुम मेरे घर में आकर बता देना’ .एेसा कहकर दौड़ती हुई कुसुम अपने घर की ओर जाने ली .
रास्ते में क्लास टीचर ‘आशा मैडम’ की नज़र उस पर पड़ी उसे क्लास के बीच में ही यूँ भागकर जाते हुए देख कर बोली …’क्या बात है कुसुम तुम इतनी जल्दी कहाँ जा रही हो ? क्लास का पीियड ख़त्म होने में तो अभी थोड़ा समय बाकि है ‘.कुसुम अपनी क्लास टीचर आशा जी को अपनी छुट्टी की अर्जी देते हुए नज़रे चुराते हुए बोली …’दीदी जी मेरे सलवार पर दाग़ लग गया है . मैं अपने घर जा रही हूँ . मुझे चार दिन की छुट्टी चाहिए ‘. आशा जी कुसुम की संकोच और दुविधा समझ चुकि थी . कुसुम को समझाते हुए आशा जी बोलीं …’डरो मत कुसुम इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हें नैपकिन देती हूँ . पीरियड आना कोई शर्म और संकोच की बात नहीं है . ये एक प्रकृतिक और सामान्य प्रक्रिया है .ये तो प्रत्येक लड़कियों को आती हैं .ये एक लड़की को संपूर्ण बनती है . लड़कियों को माहवारी होना ये एक प्राकृतिक चक्र है . इससे ही स्त्रियां नये प्रजन्म को जन्म देने की क्षमता रखती है .एक स्त्री को मातृत्व का सुख देती है और स्त्री कोसंपूर्ण नारीत्व प्रदान करती है ‘.
                  आशा दीदी की बातों को सुनकर कुसुम के मन का डर और संकोच कहीं छूमंतर हो चूका था . वह ख़ुशी -ख़ुशी आशा दीदी के साथ नैपकिन लेने ऑफिस की ओर चली गई . और छुट्टी की अर्जीवाला पत्र फाड़कर फेंक दिया . उसके मन दाग़ अब धूल चूका था .
  विनीता चैल

विनीता चैल

द्वारा - आशीष स्टोर चौक बाजार काली मंदिर बुंडू ,रांची ,झारखंड शिक्षा - इतिहास में स्नातक साहित्यिक उपलब्धि - विश्व हिंदी साहित्यकार सम्मान एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित |