धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

होली आई रे

‘धनि -धनि भाग हमार फागुनवा कुछ बोलली’ भोजपुरी गीत की ये धुन हमारे पड़ते ही फागुन में कुछ और फगुनाहट घोलकर हरियाते बासंती बयार संग होली के रंग की मादकता घोल जाता है | ऋतुराज वसंत के आगमन से प्रकृति जब रंगीन होने लगती है और फाल्गुन के आते ही वासंती रंग की धानी चुनरिया ओढ़ चुपके से उसे फाल्गुनी बना देता है | तब प्रकृति होली की हुड़दंग और लाल, पीले , हरे , गुलाबी रंगों में खोकर एकाकार हो जाती हैं | जंगल की पथरीली पठारियों में पलाश और सेमल के फूल खिलने लगते हैं | फागुन में इसकी खूबसूरती और अनूपम सौंदर्य को देख सभी जंगल की ओर आकर्षित होने लगते हैं | हाइवे के किनारे फैले जंगलों में लाल एवं गेरुए रंग के पलाश अपनी रक्ताभ लालिमा से मन को मोहित करते हैं | होली के रंग पलाश के फूलों के संग और भी मनमोहक हो उठते हैं | होली बेशक रंगो का त्योहार है जिसमें है खुशियों की भरमार है | होली के कई दिन पहले से ही अपने बचपन में संगी- साथी -संग जंगल से उन पलाश के फूलों को इकट्ठा कर रात भर बाल्टी में भिंगोकर होली के लिए रंग बनाना आज भी याद है |
            होली फागुन में ही मनायी जाती है | होली का नाम सुनते ही हमारे मानस पटल पर जीवन के कई रंग उभरने लगते हैं | अबीर और गुलाल संग होली की हुड़दंग और मस्ती भरी एक प्यारी -सी ख़ुमारी होली के उत्सव का रूप ले लेती है | होली एक एेसा त्योहार है , जो जाति और उम्र के सारे बंधन तोड़ कर अपने साथ सिर्फ़ और सिर्फ़ मस्ती भरी खिशियों के ही रंग लाती है | होली में फाल्गुन मास की ये फाल्गुनी बयार पेड़ों के पुराने पत्ते उड़ाकर सारे पेड़-पौधों को नए -नए कोपलों से सुसज्जित करते हैं | सूर्य की िरणें जैसे -जैसे प्रखर होती जाती हैं सारे पेड़ पौधे नए और हरे-भे हो जाते हैं | गेहूं की बालियां पककर फागुन की फाल्गुनी बयार संग लहराने लगती हैं | आम के वृक्षों में मंजरियों के बीच बैठी कोयल रानी की मधुर तान सुनकर भौरें आकर्षित होने लगते हैं |
             ये जो पलाश है बिहार और झारखंड के जंगलों में इसका प्राकृतिक सौंदर्य फागुन से बैशाख तक देखते ही बनती है | बिहार और झारखंड की धरती से पलाश का नाता वर्षों पुराना है | पलाश सफ़ेद रंग के भी होते हैं और लाल गेरूए रंग के भी होते हैं | जंगल में धीरे -धीरे जलती हुई घास पर बैठा जब कोई चरवाहा पलाश की मादक सुगंध में बेसुध हो अपनी बांसुरी की दर्द -भरी मधुर तान छेड़ता है तो एेसा लगता है मानो उसका गमगीन लम्हा सुंदर मीठे सपनों में ढलकर एक नई चेतना के साथ उबर उठता है |
होली एक एेसा त्योहार है जिसमें बच्चे -बूढ़े- युवा सभी होली के रंगों रंगना पसंद करते हैं | सामाजिक एकता और भाईचारे का यह त्योहार हमें अपने जमीं से जोड़े रखता है | होली की मदमस्त  लाल, पीले , हरे ,गुलाबी रंगों से सराबोर होकर मतवाला दिल नाच उठता है | अनायास ही मुँह से हिंदी चलचित्र के ये गीत निकल पड़ते हैं …’ रंग बरसे  भींगी चुनरवाली रंग बरसे ‘…दिन -भर होली के रंगों में रंगने के बाद शाम को एक -दूसरे के घर जाकर आपस में एक -दूसरे का स्वागत मिठायों ,मालपुए , कांजी बड़ों ,और तरह -तरह के पकवानों से करते हैं |सभी छोटे अपने बड़ों के पैरों में अबीर लगाकर उनके पैर छूकर उनका आर्शीवाद लेते हैं | समवयस्क हमउम्र एक दूसरे को अबीर लगाकर आपस के बैर भूलकर एक -दूसरे के गले मिलते हैं .
            चलिए ! खुशियों के कई रंग समेटे रंगों के इस त्यौहार होली का एक बार फिर अभिवादन करें | होली की खुशियों भरे रंग में रंगकर आपस के दुश्मनी को भुलाकर आपसी प्यार और भाईचारा का सन्देश एक -दूसरे तक पहुंचाएं | होली की मस्ती में सराबोर होकर एक साथ झूमें – नाचें और गायें | होली की हुड़दंग में एक -साथ कहे …’होली आई रे ‘|
विनीता चैल

विनीता चैल

द्वारा - आशीष स्टोर चौक बाजार काली मंदिर बुंडू ,रांची ,झारखंड शिक्षा - इतिहास में स्नातक साहित्यिक उपलब्धि - विश्व हिंदी साहित्यकार सम्मान एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित |