लघुकथा

बोर्ड की परीक्षाएं

बोर्ड की परीक्षाएं भी नजदीक आ गई थीं और नवरात्रि का महापर्व भी. अभिभावक अपने बच्चों के परीक्षा-परिणाम को लेकर बहुत चिंतित थे, क्योंकि नवरात्रि का महापर्व यानी सामने वाले मंदिर में शोर का महापर्व. निरंजन भी बेटे की बोर्ड की परीक्षाओं को लेकर परेशान हो रहे थे. उनको पहले के बहुत-से अनुभव याद आ रहे थे-
”पंडित जी, हमारे बच्चों की बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं, जरा जगराते की आवाज कम करवाइसे न! बच्चे पढ़ नहीं पा रहे.” एक पड़ोसी ने अनुनय करते हुए कहा था.
”पूरे साल में दो ही बार तो नवराते आते हैं. माता का और भक्तों का ध्यान भी तो रखना पड़ता है न!” पंडित जी का टका-सा जवाब होता.
”पंडित जी, जरा आवाज धीरे करवाइए, छोटा-सा बच्चा बार-बार चौंककर जग जाता है और रोने लगता है.” सामने वाली आंटी ने कहा.
”आप खुद तो कीर्तन में आती नहीं हैं, दूसरों को भी नहीं करने देंगी क्या?” पंडित जी कहकर अंदर चले गए.
”पंडित जी, हवन में जो आए हैं, उनके लिए तो अंदर के माइक से काम चल सकता है, फिर इस बाहर वाले भोंपू से हम सबका चैन क्यों खराब कर रहे हैं. आपको तो पता ही है कि मेरी माताजी कितनी बीमार हैं! वे सो नहीं पा रही हैं.” सामने वाले अंकल की व्यथा-कथा थी.
”बस दो दिन और सह लीजिए.” पंडित जी की टेप चालू ही रही और बाहर वाला माइक भी.
”पंडित जी, इस बार नवरातों में बाहर वाला माइक नहीं लगा, अंदर वाला भी धीरे था, कोई ख़ास कारण?” रास्ते में मिल गए पंडित जी से निरंजन ने जानना चाहा.
”वो क्या है न! इस बार मेरी दोनों बेटियों की बोर्ड की परीक्षा है. बच्चों की पढ़ाई का तो ध्यान रखना ही पड़ता है न!” पंडित जी निरंजन को सकते में छोड़कर आगे चल पड़े.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “बोर्ड की परीक्षाएं

  • सुदर्शन खन्ना

    आदरणीय दीदी, सादर प्रणाम. जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई. एक स्कूल की चहारदीवारी के बाहर एक मंदिर विकसित हुआ है जो सुबह सुबह रिकॉर्ड चला देते हैं. साथ ही कबाड़ियों की दुकाने हैं जहाँ दिन भर फटाक फटाक धमाक धमाक होती रहती है, वेल्डिंग वाले खुले में ही वेल्डिंग में मशगूल रहते हैं, आते जाते विद्यार्थियों की आँखो में उसका क्या दुष्प्रभाव होगा बगैर इसकी चिंता किए, स्कूल के आस पास अमूमन नीरवता खंड घोषित होता है, पर स्कूल के बाहर न तो ऐसा कोई सूचनापट्ट लगा है और न ही लोग नियंत्रण में हैं, खूब जम कर हॉर्न्स का प्रदर्शन होता है, सुबह सुबह अनियंत्रित करतब दिखाती दौड़ती स्कूलों की कैब्स ज़्यादा फेरे लगाने की फिराक में तेज़ी से चलाते हैं और हॉर्न पर तो जैसे एक हाथ रखे ही रहते हैं. सच कहा है जिस तन लागे वह तन जाने. बहुत ख़ूबसूरत रचना के लिए हार्दिक आभार.

    • लीला तिवानी

      प्रिय ब्लॉगर सुदर्शन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई. जब पंडित जी के अपने बच्चे बोर्ड की परीक्षा में आए तब उनका विवेक जागा. शायद अगली बार उनका यह विवेक सो जाए. आपने जो मंदिर वाली बात लिखी, वह प्राःय हर स्कूल के साथ लागू होती है. हम जब बोर्ड की परीक्षा में ड्यूटी दे रहे होते थे, तब भी कहीं-न-कहीं से माइक पर जोर-जोर से कीर्तन की आवाज आती रहती थी. हॉर्न्स के प्रदर्शन का तो जवाब ही नहीं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    अपने बच्चों की बोर्ड की परीक्षाएं आती है तो पंडित जी का विवेक जग जाता है, अन्यथा उनको अपनी कमाई ही नजर आती है. जितने अधिक लोग उनकी आवाज को सुन पाएंगे, उतने ही अधिक लोग मंदिर में आएंगे और चढ़ावा चढ़ाएंगे. उस समय वे जान-बूझकर बच्चों, बुजुर्गों, बीमारों की समस्याओं और ध्वनि प्रदूषण को भुला देते हैं.

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय दीदी, बहुत सुन्दर विषय पर बहुत सकारात्मक सोच. एक बार मेरे घर
      के पीछे स्थित कालेज में कोई कार्यक्रम चल रहा था, लाउड स्पीकर से कानफाडू
      आवाज आ रही थे. मेरी बेटी का दूसरे दिन हायर सेकंडरी का पेपर था, बहुत
      परेशान हो रही थी. कहने लगी पापा कुछ कीजिये. उन दिनो मोबाइल नही लेंड
      लाइन फोन होते थे. मैने कालेज का फोन नंबर देखकर वहन फोन लगाया. मैने
      कहा मैं सिविल लाइन थाने से बोल रहा हूँ, शिकायत आई है किआपने बहुत
      तेज आवाज में लाउड स्पीकर लगा रखा है, कृपया बंद करें. तुरंत ही लाउड
      स्पीकर की आवाज बंद हो गयी.

      • लीला तिवानी

        प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. कभी-कभी सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है. आपकी ऐसी ही ट्रिक कारगर हो गई. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

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