लघुकथा

दूसरा तरीका

आज रीता काम करने आई तो उसका चेहरा खिले हुए गुलाब की तरह महक रहा था और आते ही वह उत्साहपूर्वक अपने काम में लग गई. लग रहा था रमेश के साथ उसकी सुलह हो गई. मुझे वह दिन याद आया, जब रीता ने कहा था-
”मां जी, कल से मैं थोड़ा दूर से आऊंगी, इसलिए आने में थोड़ी देर हो जाया करेगी.”
”क्या हुआ, मकान बदल लिया क्या?”
”नहीं, मैं अपनी ममी के पास जा रही हूं, रमेश से झगड़ा हो गया है. शराब के साथ अब वह मार-पीट पर भी आ गया है. मैं सारा दिन काम करके जाती हूं, पैसे भी छीन लेता है, ऊपर से मार भी खाओ! बच्चे भी बहुत परेशान हो गए हैं.”
”ठीक है रीता, पर एक बात ध्यान से सुनो-
जीवन जीने के दो तरीके हैं,
एक जो पसंद है, उसे हासिल करना सीख लो,
दूसरा जो हासिल है, उसे पसंद करना सीख लो.”
”आप ही बताइए, मैं क्या करूं? काम भी करती रहूं और मार भी खाती रहूं?”
”ऐसी बात नहीं है, कारण पता करो कि वह इतनी शराब क्यों पीता है और चाहता क्या है?”
”मां जी, शराब पीने के कारण उसे कोई काम नहीं देता, ऊपर से वह मुझे भी जल्दी घर आने के लिए कहता है. अब मैं भी काम कम करूं, तो गुजारा कैसे चले?”
”उसे ऐसे कहकर देखो- ”अगर तुम शराब पीना बंद कर दोगे, तो मैं भी 1-2 घर का काम छोड़कर जल्दी घर आ जाया करूंगी.”
बात रीता के मन भा गई थी.
”ठीक है, तुम जल्दी आ जाया करोगी तो मैं शराब पीना छोड़ दूंगा.” रमेश ने कहा था.
तभी रीता बर्तन मांजकर आ गई थी और झाड़ू-पोंछा शुरु करने से पहले बोली- ”मां जी, आपका नुस्खा काम कर गया. मैंने 1-2 घर का काम छोड़ दिया और रमेश ने शराब पीना छोड़ दिया. अब वह कहीं काम भी मिल गया है और वह मन से कर रहा है और उसकी शराब तो छूट ही गई है.”
उसने दूसरे तरीके का चुनाव कर लिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “दूसरा तरीका

  • मनमोहन कुमार आर्य

    कहानी अच्छी लगी। धन्यवाद्।

    • लीला तिवानी

      आदरणीय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि यह लघुकथा आपको अच्छी लगी. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद

  • रविन्दर सूदन

    आदरणीय दीदी, बहुत सुन्दर लघुकथा, बहुत प्रेरणादायक । वह लोग बहुत भाग्यशाली है
    जो दूसरा रास्ता तलाश लेते हैं और वह लोग बहुत सौभाग्यशाली हैं जिन्हें आप जैसा
    मार्गदर्शक मिलता है । रास्ते तो दूसरे भी हैं, बताने वाल चाहिए, भटके हुए कई हैं,
    मंजिल तक पहुंचाने वाला चाहिए ।

    • लीला तिवानी

      प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, क्या बात है! जिन्हें आप जैसा प्रोत्साहित करने वाला पाठक मिले, वे लेखक निश्चय ही सौभाग्यशाली हैं, उन्हें मंज़िल मिली ही समझिए.

  • लीला तिवानी

    अत्यंत सरल और ग्रहणीय समाधान. ‘हासिल को ही तो पसंद कर लो.’ का सुंदर संदेश देती हुई लघुकथ, जिसने रमेश की शराब की लत से छुड़ा दिया और रीता-रमेश को फिर से मिला दिया. परिवार की खुशियां वापिस आ गईं.

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