कविता

कविता “शब्द”

बचपन में जब हम छोटे होते
तो मुँह से कुछ भी ऊलजुलूल निकाल लिया करते थे
और फिर माँ का डांट से
बिगडें हुये शब्दों की गलतियाँ मान लिया करते थे
पर आज जब बड़ा हो गया हूँ तो सोचता हूँ,
दिल में शब्द तो हैं,पर जुबाँ पर लाने का कोई सलीका नहीं है
और ज़िन्दगी तो है, पर जीने का कोई तरीका नहीं है
हर आवाज़ की पहचान है वो,
और हर शख्स की जुबानी हैं
जिनसे बनते और बिगड़ते हैं हमारे रिश्ते,
ये उन “शब्दों” की कहानी है
शब्द
कभी प्यार के इजहार में निकलें शब्द
कभी गुस्से और अहंकार में निकले शब्द
कभी हर्ष और उल्लास में निकले शब्द
तो कभी किसी के उपहास पर निकले शब्द
कुछ अक्षरों से मिलकर बने कुछ शब्द
अच्छा हमें लगता है
कि इन अक्षरों का भी अपना एक परिवार होता है
क्योंकि शब्द तभी बनते हैं,” जब दो अक्षरों में प्यार होता है “
होते इनमें भी हैं वार तकरार और नफरतें हजार बार
पर रिश्ता अटूट होता है, जानते हो क्यूं????
क्योंकि हर अक्षर को पता है कीमत अपने रिश्तों की ,
और पता है, हमारे मिलने से ही तो शब्द का तैयार होता है
और दूर जाने से हम दोनों का वजूद खोता है
पर सुनो !!
मैने माना कि शब्दों को कोई रूप नहीं होता,
कोई आकार नहीं होता,
पर सच है कि शब्दों से बड़ा कोई वार नहीं होता
“क्योंकि शब्द अगर हथियार बन जायें ना,
   तो इस दिल को कुरेद कर रख देते हैं
     घाव नहीं देते बदन पर एक भी,
     मगर रूह को छेद कर रख देते हैं “
कभी एक पल रुकना और सोचना,
” गम जितनें भी हैं तुम्हारी ज़िन्दगी में,
   तुम्हारी किस्मत का कोई गद्द तो नहीं
   तुम्हारे अकेले और अधूरेपन की वज़ह,
    कहीं तुम्हारे शब्द तो नहीं  “
और कुद् से पूछना?
“टूटे जितने भी रिश्ते हैं
आजतक तुम्हारे… . तुम्हारे अपनों सें,
क्या उन्हें बचाया जा सकता था क्या??
कभी मानकर गलती अपने शब्दों की
तो कभी भुलाकर किसी के कहे शब्दों कों,
फिर से मुस्कुराया जा सकता था क्या??
पर हम बतायें ताकत आपको आपके शब्दों की……
कि गर् टूटा है कोई रिश्ता
आपके बिगड़े शब्दों से,
तो शब्दों के ही माफ़ीनामे से
रिश्ते को फिर से बनाया जा सकता है
और चुभ गया है कोई शब्द तुम्हारे दिल में
किसी का काँटों की तरह
तो साहब! तुम्हे तो पता है ना,
गुलाब के भी कांटे निकालकर
गुलाब को दिल के गुलदस्तान में सजाया जा सकता है
और बेइंतहा रूठा है कोई शख्स आपसे
तो शब्दों की शरारत से उसे भी मनाया जा सकता है
गर् जीना चाहते हो अपनी जिन्दगी को खुशी खुशी,
तो समेट लो हर रिश्ते को अपने शब्दों से,
और कुद् को नयी पहचान दो
आपके शब्दों से बनते हैं आपके रिश्तें
जी हाँ आपके शब्दों से बनते हैं आपके रिश्तें
तो जब भी बोलो, अपने शब्दों पर ध्यान दो ।।
शिवम् द्विवेदी 

शिवम् द्विवेदी

कानपुर, उत्तर प्रदेश M- 7275281379, 8840431309