कविता

वो जून की पहली बरसात

वो जून की पहली बरसात,
वो अंधेरी गहरी शाम,
तन को भिगोने वाली बूंदे,
नैनों में जागने वाले सपने सुनहरे,
कोमल कच्ची नींद के ख्वाब,
ठंडी शीतल पवन की छुअन,
पिघल उठे दिल के अरमान,
भीग उठी तपिश मन की,
बादल हवा हुए प्रेम आलिंगनबद्ध,
न जाने कब हुए बेसुध,
 हवा में खुशबू,
संदल जैसी महक,
होती हुई कल्पनाएं साकार,
जंगल का उल्लासित वातावरण,
हुलस कर नांच उठा मोर,
आकाश से रिसते,
धरती तक पहुंचते,
प्रेम के अहसास,
जिसमें धरा समाहित करती,
अपने आत्माकाश के कहीं गहरे तक,
जिसमें एकाकार हो,
दो जिस्म एक जान,
पूरे हो रहे हैं संवाद,
इश्क में फना हो,
डूब जाने को…
शोभा रानी गोयल

शोभा गोयल

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