गीतिका/ग़ज़ल

फिर सदाबहार काव्यालय- 32

नज़्म
अधूरी इच्छा साथ ले कर क्यों चले?,

अंधेरों की सौगात ले कर क्यों चलें?

मन में सौ विचार आते-जाते हैं,

सपनों की बारात ले कर क्यों चलें?

कौन मिलता है यहां बिन स्वार्थ के,

स्वार्थी को साथ ले कर क्यों चलें?

हर तरफ भरमार है दीवानों की,

पगलों से जजबात ले कर क्यों चलें?

उठ नहीं पायेंगे हम गिरने के बाद,

दिल में अपने मात ले कर क्यों चलें?
डॉ० अनिल चड्डा

संक्षिप्त परिचय
आपका जन्म दिल्ली में 1952 में हुआ था । कविता लिखने का शौक बचपन से ही रहा है, शायद 14-15 वर्ष की उम्र से ही। दिल्ली से विज्ञान में स्नातक तक की पढाई करने के बाद आपने अपनी कविता में निखार लाने के लिए हिंदी में एम.ए. किया और फिर पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की । 1972 में सरकारी नौकरी शुरू करके 2012 में निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए। इस बीच अनेक कविताओं की रचना की, जिन्हें इनके ब्लागों https://anilchadah.blogspot.com, https://anubhutiyan.blogspot.in पर पढ़ा जा सकता है। इनकी रचनायें साहित्यकुञ्ज, शब्दकार एवं हिन्दयुग्म जैसी ई-पत्रिकाओं के अतिरिक्त सरिता, मुक्ता, इत्यादि पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रही हैं । हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिये और उन साहित्यकारों को, जो साहित्यरचना में योगदान करने के बावजूद अनजान ही रह जाते हैं, एक मंच देने के लिये उन्होंने एक हिंदी वेबपत्रिका साहित्यसुधा प्रारम्भ की है।

फिर सदाबहार काव्यालय के लिए कविताएं भेजने के लिए ई.मेल-
tewani30@yahoo.co.in

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिर सदाबहार काव्यालय- 32

  • लीला तिवानी

    डॉ० अनिल चड्डा भाई जी, फिर सदाबहार काव्यालय-32 से आपने हमारे ब्लॉग पर दस्तक दी है, आपका हार्दिक स्वागत है. आपकी नज़्म से आपने हमें जीवन-दर्शन की सच्चाइयों से रू-ब-रू करवाया है. क्या बात कही है!
    उठ नहीं पायेंगे हम गिरने के बाद,

    दिल में अपने मात ले कर क्यों चलें?
    यही जज़्बा तो जीवन का सार है. बहुत सुंदर काव्य-रचना के लिए कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं.

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