लघुकथा

नया रिश्ता

अगस्त का पहला रविवार था । सौरभ का मिजाज बदला-बदला सा लग रहा था । पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि अन्नू के लिए चाय बनायें, हमेशा अपना रौब झाड़ता था । थाने की पुलिसगिरी घर में भी चलती थी । अन्नू के लिए किसी अजूबे से कम नहीं लग रहा था । सौरभ पौधों को पानी देने लगा जो रोज अन्नू देती थी । नाश्ता के वक्त सौरभ ने पूछा -“अन्नू, आज शाम कहीं जा रही हो.?” सौरभ के प्यार भरे सवाल से अन्नू खिल गई, आवाज नहीं निकली मगर नहींं में सिर जरूर हिलाई । सौरभ पुनः बोल पड़ा “आज शाम साथ में शॉपिंग चलेंगे, आपको जो पसंद हो खरीदना फिर मूवी देखेंगे, खाना भी बाहर ही खायेंगे, तैयार रहना ।” इतना कहकर सौरभ ड्यूटी के लिए निकल पड़ा । आज अकस्मात ही पैर दरवाजे तक चल पड़ा । सौरभ को पुलिस वाले स्टाइल से जाते हुए देख रही थी । इतने सालों बाद पति में आए अचानक बदलाव से अन्नू बहुत आश्चर्य थी और पहली बार इतनी खुश लग रही थी। अन्नू भी अब तय कर लिया कि बदलाव का कारण क्या है जान कर रहूँगी। शाम को सौरभ घर आया तो अन्नू डरते हुए पूछी -” सुनो न जी….? आज जो भी देख रही हूँ हकीकत तो है न…? कि कोई सपना है …?” सौरभ हँसते हुए बोला -” तो इतनी हिचक क्यों रही हो बुद्धू….? आज फ्रेंडशिप डे है। हमने शादी के दो वर्ष ठीक से गुजारे] उसके बाद हमारे दांपत्य जीवन में दोस्ती कहीं गुम हो गई थी इसलिए हम खुश नहीं थे और ना ही हमारे जीवन में सुख-चैन था । अब हम आज से दोस्त हैं दोनों अपने अपने हिस्से की दोस्ती निभाएंगे ठीक है…? अब आपको छुप छुपकर रोने की जरूरत नहीं है आज हमारे लिए बहुत बड़ा दिन है, हैप्पी  फ्रेंडशिप डे।” इतना कह कर सौरभ अन्नू को आलिंगन कर लिया और एक नया रिश्ता का श्री गणेश हुआ ।

— भानुप्रताप कुंजाम ‘अंशु’