कविता

सृजन-से-सृजन

सृजन-से-सृजन होता है, यह तो आप जानते ही हैं. पेड़-पौधे-वल्लरियां, मनुष्य-प्राणी, कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी सभी सृजन-से-सृजन करने के अनुपम उदाहरण हैं. हमारे पाठक-कामेंटेटर्स तो कविता-से-कविता का सृजन करने में इतने माहिर हैं, कि प्रतिक्रियाओं में ही कवि सम्मेलन और मुशायरे का आयोजन कर लेते हैं.

यही नहीं हमारे पाठक-कामेंटेटर्स रोड शो में ऐसी दूर की कौड़ी ले आते हैं, कि देखते ही बनता है. आप स्वयं ‘रोड शो-3: बात अद्भुत खबरों की’ या किसी भी एपीसोड की प्रतिक्रियाएं देख सकते हैं.

‘दिलखुश जुगलबंदी’ एक सामूहिक प्रयास है. हमारे पाठक-कामेंटेटर्स एक दिलखुश जुगलबंदी से न जाने कितनी दिलखुश जुगलबंदी बना देते हैं. इस बार की ‘दिलखुश जुगलबंदी’ का शीर्षक था- ”मौनव्रत अब भी कल्याणकारी है”. इस एपीसोड में ”मौनव्रत के महत्त्व को परिभाषित करती यह रचना और प्रतिक्रियाएं एक छोटी-मोटी थीसिस के समान हो गई हैं.”

बात फिर सदाबहार काव्यालय की करें तो फिर सदाबहार काव्यालय- 33 में बात पंछियों की सीख की हो रही थी, लेकिन इसकी प्रतिक्रियाओं में वृक्षों, प्रदूषण और पर्यावरण पर अच्छी-खासी उपयोगी विषयवस्तु की प्रस्तुति हो गई.

इसी के अगले एपीसोड ”फिर सदाबहार काव्यालय- 34” में बात जिंदगी की हो रही थी और पाठक-कामेंटेटर्स ने जिदगी पर अपनी कविताओं से वह रंग जमाया, कि हमें उनकी कविताओं से ”सृजन-से-सृजन” ब्लॉग का आयोजन कर अत्यंत हर्ष हो रहा है. प्रस्तुत हैं ”फिर सदाबहार काव्यालय- 34” में कविता-नज़्म-शायरी के रूप में हमारे पाठक-कामेंटेटर्स की काव्यमय प्रतिक्रियाएं-

1.कभी दिन के उजालों में भी धुँधली रही जिंदगी,
कभी रात के अँधियारों में भी चमकती रही जिंदगी,
कभी झूठी मुस्कान के पीछे सिसकती रही जिन्दगी,
कभी आँसुओं में भी खुशी पाती रही जिंदगी,
कभी सब कुछ पाकर भी अधूरी रही जिंदगी,
कभी अभावों में भी सम्पूर्ण रही जिन्दगी,
कभी कुछ खोकर सब कुछ पाती रही जिन्दगी,
कभी कुछ पाकर सब कुछ खोती रही जिन्दगी
कभी वीराने में भी चहकती है जिंदगी,
कभी दिव्य संगीत में भी उदास-सी है जिंदगी,
कभी मेलों में भी अकेली है जिंदगी,
कभी अकेले में भी मेला है जिन्दगी,
कभी आशाओं में भी निराश है जिन्दगी,
कभी निराशा में उत्साहित है जिन्दगी,
कभी रंगों में भी बेरंग है जिन्दगी,
कभी अवर्ण में भी रंगीन है जिन्दगी,
कभी काली रातों की कालिख है जिन्दगी,
कभी भोर की सुनहरी धूप है जिन्दगी,
कभी अनुराग में भी वैराग है जिन्दगी,
कभी वैराग में अनुराग है जिन्दगी,
कभी मूकता में भी भावों की अभिव्यक्ति है जिन्दगी,
कभी वाक्यों में भी मूक है जिन्दगी,
कभी विस्तृत होकर भी सीमित है जिन्दगी,
कभी सीमित रहकर भी विस्तृत है जिन्दगी,
कभी जीत कर हारने में भी है जिंदगी,
कभी हार कर जीत में भी है जिन्दगी,
कभी व्यवधानों की परिपाटी है जिंदगी,
कभी व्यवधानों में भी समाधान है जिन्दगी,
कभी स्वप्न में भी जागती है जिन्दगी,
कभी जागते-जागते स्वप्न-सी है जिन्दगी,
कभी कराह में भी सुकून है जिन्दगी,
कभी सुकून में भी दर्द है जिन्दगी!!
गौरव द्विवेदी

2.जिंदगी…

धूप-छाँव-सी जिंदगी…
पल पल करवट बदलती जिंदगी!
हर आहट पे मुस्कुराती जिंदगी…
जिंदगी…ये जिंदगी!
गमों के अंधेरों में, लौ-सी जलती जिंदगी…
सुनहरी धूप में खिलखिलाती जिंदगी!
धड़कनों संग गुनगुनाती जिंदगी!
सितार के तार-सी जिंदगी…
जिंदगी…ये जिंदगी!
नवरसों का कुम्भ, जिंदगी!
कभी नवनीत, कभी फौलाद-सी जिंदगी!
प्रीत की रीत सिखाती जिंदगी!
सुर-साज से सजी-धजी जिंदगी!
भीड़ में भी तन्हा-तन्हा जिंदगी!
तन्हाइयों में शमा-सी जलती जिंदगी!
कुसुम सुराणा

3.आगे बढ़ने की चाह हो जिसे
राह मिल ही जाती है.
हौसला हो जीने का
फासले मिटा देती है जिंदगी.
रिश्ते हों विश्‍वास के,
मित्रता के,
दूरियां नही अखरतीं,
सीमा पर प्रहरी, हमारे जवान ,
अपनों से कोसों दूर,
खट्टी-मीठी यादें अपनों की ,
जिंदगी में खुशियां बिखेरती हैं.
कभी-कभी खयालों से भी,
डर जाती है जिंदगी,
कभी-कभी अपनों के
अपना होने का अहसास भी
महका-महका देती है जिंदगी.
स्वयं-सिद्ध हो जो, जिंदादिल भी,
मुश्किलों में मुस्कुराती है जिंदगी,
हिम्मत और अटूट लगन से
मंजिल पा लेती है जिंदगी.
मन में साहस-उल्लास ले
सपने बुनती जिंदगी,
जो चाहा, सो पा ही लेती,
अथक प्रयास, जिद्द से जिंदगी.
कभी परिंदों-सी लेती ऊँची उड़ान,
कभी सागर की गहराई में ढूंढे मोती,
कभी गमगीन, कभी सुख-चैन
जीवन का गीत गुनगुनाती जिंदगी.
चंचल जैन

4.रवि भाई की शेरो-शायरी
1.जीने की तमन्ना तो बहुत है,
पर कोई आता ही नहीं ज़िंदगी में, ज़िंदगी बनकर.
2. यूँ तो ऐ ज़िन्दगी तेरे सफर से शिकायतें बहुत थी,
मगर दर्द जब दर्ज कराने पहुँचे तो कतारें बहुत थीं.
3. इतनी बदसुलूकी ना कर ऐ ज़िंदगी,
हम कौन सा यहाँ बार बार आने वाले हैं.
4. खरीद सकते तो उसे ज़िंदगी बेच कर खरीद लेते,
पर कुछ लोग कीमत से नहीं किस्मत से मिला करते हैं.
5. ज़िंदगी है सो गुजर रही है,
वरना हमें गुजरे तो ज़माना हुआ.
6.ज़िंदगी ने कई सवालात बदल डाले,
वक़्त ने मेरे हालात बदल डाले,
मैं तो आज भी वही हूँ जो मैं कल था,
बस मेरे लिये कुछ अपनों ने अपने ख्यालात बदल डाले.
7.कभी कोयल की तरह कूकती रही ज़िंदगी,
कभी कई मौकों पर चूकती रही ज़िंदगी,
कभी नदी की कलकल-सी बहती रही ज़िंदगी,
कभी दर्द के थपेड़े सहती रही ज़िंदगी.
कभी फटे कपड़े जैसी सीते रहे ज़िंदगी,
फिर भी ज़िंदादिली से जीते रहे ज़िंदगी.
8.महफ़िल में हँसना हमारा मिजाज बन गया,
तनहाई में रोना एक राज बन गया,
दिल के दर्द को चेहरे से जाहिर न होने दिया,
बस यही जिंदगी जीने का अंदाज बन गया.
9. हर एक बात पर वक़्त का तकाजा हुआ,
हर एक याद पर दिल का दर्द ताजा हुआ,
सुना करते थे ग़ज़लों में जुदाई की बातें,
खुद पे बीती, तो हकीकत का अंदाजा हुआ.
रविंदर सूदन

5.जिन्दगी तू इक अजीब पहेली है

जिन्दगी तू इक अजीब पहेली है
जिससे भी मिली उसी की हो ली है
हो आबालवृद्ध, रंक हो या राजा
हर किसी को तूने अंक से लगा लिया
इसकी नहीं तुझे शिकायत परमात्मा से
जिन्दगी हक है हर किसी का
तूने कर्मों से अपने सिखला दिया
कैसी भी आयी हों मंजिलें
कैसी भी आयी हों मुश्किलें
तू तब तक चलती रही है
जितनी लिखी हैं सांसें
चलना तेरा है हमको सिखा रहा
जिन्दगी जिन्दगी है यह बता रहा
प्रेम करो आपस में ऐ जिन्दगियों
वो भी है जिन्दगी मैं भी हूं जिन्दगी.
सुदर्शन खन्ना

6.ज़िंदगी का फलसफ़ा

ज़िंदगी को शिद्दत से की गई शिरकत समझो,
तो ज़िंदगी इनायत हो जाती है
ज़िंदगी को गिले-शिकवों का पुलिंदा समझो,
तो ज़िंदगी शिकायत हो जाती है
ज़िंदगी को रसभरी तरन्नुम समझो,
तो ज़िंदगी नज़ाकत हो जाती है
ज़िंदगी को परमात्मा की नेमत समझो,
तो ज़िंदगी इबादत हो जाती है.
लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “सृजन-से-सृजन

  • लीला तिवानी

    बेमिसाल-लाजवाब हमारे पाठक-कामेंटेटर्स-
    हर रूप में हमारे पाठक-कामेंटेटर्स बेमिसाल हैं.

    ‘दिलखुश जुगलबंदी’ एक सामूहिक प्रयास है. हमारे पाठक-कामेंटेटर्स एक दिलखुश जुगलबंदी से न जाने कितनी दिलखुश जुगलबंदी बना देते हैं. इस बार की ‘दिलखुश जुगलबंदी’ का शीर्षक था- ”मौनव्रत अब भी कल्याणकारी है”. इस एपीसोड में ”मौनव्रत के महत्त्व को परिभाषित करती यह रचना और प्रतिक्रियाएं एक छोटी-मोटी थीसिस के समान हो गई हैं.”

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