गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

में खोई ख्वाब में अक्सर नई दुनिया बनाती हूँ |
जहाँ इन्सानियत पलती वहीं रिश्ता बनाती हूँ |

जहाँ नफ़रत जहाँ रंजिश दिखी तकरार की रेखा –
मिटा कर उन लकीरों को नयी रेखा बनाती हूँ |

मुकम्मल ख्वाब होगा है यकीं दिल को हमारे भी –
वही तदबीर करती हूँ वही रस्ता बनाती हूँ |

कोई मंदिर कोई मस्जिद कोई गिरजा नहीं टूटे –
चढा कर प्रेम का बख्तर उसे पक्का बनाती हूँ |

इसी माटी में जन्मी हूँ इसी में जा मिलूँगी मैं –
इसी के ही लिये जीती नया चेहरा बनाती हूँ |
मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016