हास्य व्यंग्य

सिरफिरों के हाथों में…….

लोग बोलते रहते हैं कि वह तो सिरफिरा है और उससे बहुत परेशान हैं। सिरफिरा सोचता है कि उसकी स्थिति सिरफिरे लोगों ने बनाई है।बहरहाल सिरफिरापन नियति है सिरफिरों की।अब सिरफिरों से आप परेशान होते हैं तो होते रहें अपनी बला से।वैसे भी सिरफिरों से कौन परेशान नहीं है।हाल ही में सिरफिरों से एक शहर परेशान हो गया।यह कोई नई बात नहीं है।शायद उस शहर को नहीं मालूम कि सारा देश सिरफिरों से परेशान है, यहाँ तक कि सम्पूर्ण विश्व समय-बेसमय सिरफिरों से परेशान होता आया है।ठीक है, यह शहर बड़ा शहर है,इसे लोग मिनी बाम्बे कहते हैं,हालांकि अभी तक इसे मिनी मुम्बई कहते नहीं सुना गया क्योंकि यहाँ अभी किसी सेना का गठन नहीं हुआ है जिस दिन यहाँ ऐसी-वैसी सेना उठ खड़ी होगी, उत्तर-दक्षिण की बातें शुरू होते कितनी देर लगेगी!
हाँ,तो बात हो रही थी इस बड़े शहर के सिरफिरों की। एक सिरफिरा तो 55 फीट ऊँचे होर्डिंग पर चढ़ गया और दो घंटे तक शास्त्री ब्रिज पर जाम लगा रहा। सिरफिरों की ताकत का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे चलते पहियों को जाम कर दे।कुछ दिन पहले ही एक सिरफिरा चिड़ियाघर में बाघिन के बाड़े की जाली पर चढ़ गया था।यानी सिरफिरे कुछ भी कर सकते हैं।ये तो सड़क छाप सिरफिरे हैं,कुछ तो भी करतब दिखाते रहते हैं।हम तो देश-दुनिया के सिरफिरों के करतब देखते आए हैं।दुनिया को विश्व युद्धों का मजा चखाने का काम भी तो सिरफिरों ने ही किया है।
सिरफिरों की अपनी सोच होती है,अपनी दृष्टि होती है,अपने विचार होते हैं, अपना विवेक होता है।अरे,क्षमा करें,मैंने विवेक शब्द का प्रयोग कर दिया, आप नाराज मत होइए।लेकिन फिर भी वे स्वयं तो अपने आप को मानते ही हैं कि वे ही दुनिया के सबसे बड़े विवेकशील प्राणी हैं।वैसे भी उनकी बात को मान्यता देने वालों की भी कोई कमी तो नहीं! फिर कैसे कह दें कि वे विवेकवान नहीं है।आप भले ही अपनी अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसा कह सकते हैं लेकिन ऐसा कहकर मैं देशद्रोही भी तो कहलाना पसंद नहीं करूंगा।
सिरफिरों के हाथों में गुलदस्ता तो हो नहीं सकता।बन्दर के हाथ में उस्तरा की कहावत बिना बात तो बनी भी नहीं होगी।हो सकता है कि किसी सिरफिरे के हाथ में सत्ता देखकर ही इसकी इजाद हुई हो! अभी हम देख ही रहे हैं कि जिसे क्रिकेट की बॉल पकड़ाकर देश की ओर से टीम का नेतृत्व करने का मौका मिल गया, उसे ही देश की अवाम ने देश की कमान थमा दी।अब वही सोच रही है कि सत्ता पाकर वह सिरफिरा हुआ है या कि सिरफिरे को सत्ता थमा दी।अब जो भी हो,उस्तरा तो उसके हाथ में है ही। ठीक इसी तरह दुनिया पर दादागिरी करने वाला देश और उसका नेता भी उस्तरा लेकर घुम रहा है।अब इसके आगे और कितने गिनाऊं! अब तो लगता यही है कि चारों ओर सिरफिरे उस्तरा लेकर खड़े हैं और जनता परेशान हाल जाम में खड़ी मूकदर्शक बनकर उनका तमाशा देख रही है इस उम्मीद में कि कब वे ऊपर से नीचे आएं या ला दिए जाएं और जनता आगे बढ़ जाएं।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009