बाल कविता

बरखा

नाच नचाने बादल आया,
संग मे कितना पानी लाया।
हर ओर थिरकती हवा चली,
मदहोश मचलती मनचली।
साँय साँय हो इधर उधर ,
न पता उसे जाना किधर।
बरखा को न्यौता दे आयी,
देख उसे बरखा मुस्काई।
बरखा रानी हवा सयानी,
एक सिरे की दो कहानी।
घन  घन बादल गरजा,
लगा जोर से डोल बजा।
लो बरखा ने रफ्तार पकड़ ली,
थिरकी रंगीली वो छेन छबीली।
हर पत्ता भीगा डाली भीगी,
हुई धरा भी भीगी भीगी।
सड़क भीगी कपडे भीगे,
छत पर सूखे गेँहू भीगे।
इधर उधर यू डोल कर,
घूम रही हर गली डगर।
शीतल वन उपवन हर पात पात,
शीतल हुई बरखा की ये मुलाकात।

आस्था दीक्षित

निवासी- कानपुर