स्वास्थ्य

सभी बीमारियों की माता है कब्ज

प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि आकस्मिक दुर्घटनाओं को छोड़कर सभी रोगों की माता पेट की खराबी कब्ज है। इसमें मलनिष्कासक अंग कमजोर हो जाने के कारण शरीर से मल पूरी तरह नहीं निकलता और आँतों में चिपककर एकत्र होता रहता है। अधिक दिनों तक पड़े रहने से वह सड़ता रहता है और तरह-तरह की शिकायतें पैदा करता है तथा बड़ी बीमारियों की भूमिका बनाता है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में सबसे पहले कब्ज की ही चिकित्सा की जाती है। एक बार कब्ज कट जाने पर रोगी का स्वस्थ होना मामूली बात रह जाती है।

कई लोग कहते हैं कि हमें कब्ज नहीं है, क्योंकि हमारा पेट रोज खूब साफ हो जाता है। वे लोग गलती पर हैं, क्योंकि रोज शौच होते रहने पर भी कब्ज हो सकता है। इसे यों समझिये कि घर में हम रोज झाड़ू लगाते हैं और काफी कूड़ा निकालकर फेंकते हैं। फिर भी होली-दिवाली सफाई करने पर घर में बहुत कूड़ा निकलता है। कब्ज भी इसी प्रकार होता है।

कब्ज की प्राकृतिक चिकित्सा है- मिट्टी की पट्टी, एनीमा और कटिस्नान। पहले आधा घंटा पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखें, फिर गुनगुने पानी का एनीमा लें और अन्त में 5 मिनट का कटिस्नान ले लें। इससे कब्ज में काफी आराम मिलेगा। जिनका कब्ज बहुत पुराना हो, उन्हें प्रारम्भ में इन क्रियाओं के साथ दो-तीन दिन उपवास भी करना चाहिए।

कई बार हफ्तों तक उपवास करने और रोज एनीमा लेते रहने पर भी कड़ा और सड़ा हुआ काला-काला बदबूदार मल निकलता ही जाता है। ऐसे लोगों को उपवास और एनीमा तब तक करते रहना चाहिए, जब तक कि पुराना मल निकलना बन्द न हो जाये। उसके बाद सभी प्रकार के रोग समाप्त हो जाते हैं।

जिनके पास मिट्टी की पट्टी, एनिमा और कटिस्नान लेने की सुविधा न हो, वे सुबह खाली पेट सरल विधि से ठंडा कटिस्नान लेकर और उसके बाद दो-तीन किलोमीटर तेज चाल से टहलकर अपना कब्ज कुछ ही दिनों में दूर कर सकते हैं। एनिमा और कटिस्नान की सरल विधियाँ आगे की कड़ियों में बतायी गयी हैं।

कब्ज पाचन शक्ति को बहुत कमजोर कर देता है और सब कुछ खाते रहने पर भी व्यक्ति कमजोर ही रहता है। ऐसी स्थिति में पाचन शक्ति को मजबूत करने के लिए हर तीन दिन बाद पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी रखने के बजाय गर्म पानी की पट्टी रखकर आँतों की सिकाई करनी चाहिए। फिर रोज की तरह एनीमा और कटिस्नान लेना चाहिए।

यदि आपका खानपान सात्विक नहीं है तो एक बार कब्ज कट जाने के बाद भी कभी भी कब्ज हो सकता है। इसलिए भविष्य में कब्ज न हो, इसके लिए खान-पान में सुधार करना आवश्यक है। उन वस्तुओं से बचना चाहिए जिनके कारण कब्ज हुआ था। यदि सप्ताह में एक दिन या एक बार उपवास कर लिया जाय और उस दिन प्रातःकाल एनीमा भी ले लिया जाये, तो कभी कब्ज होने का प्रश्न ही नहीं उठता। कब्ज से बचे रहने के लिए प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में पानी भी अवश्य पीना चाहिए।

— डाॅ विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com