लघुकथा

एक नया सुखद मोड़

इसे आप कथा कहें, लघुकथा, आत्मकथा अथवा संस्मरण, हमारे लिए यह इंकार की रामकहानी है.
”ममी, आप इतने बरसों से इतना बढ़िया लेखन करती आ रही हैं, कंप्यूटर पर कुछ लिखना शुरु कीजिए न!” आजकल के बच्चों की तरह कंप्यूटर के विशेषज्ञ हमारे सुपुत्र राजेंद्र तिवानी ने कहा.
”बेटा, कर्सर-कंप्यूटर के इस नए युग में हमारी पुरानी कलम कहां टिकेगी!” शायद इंकार की यह पहली सीढ़ी थी. ”फिर कंप्यूटर ऑपरेट करना कहां आता है मुझे!”
”लेखन पर इतने पुरस्कार पा चुकी हैं, इतनी फाइलें भरी हुई हैं, वे फाइलें किस काम आएंगी! कौन पढ़ेगा? अपनी रचनाओं को नेट से दुनिया के सामने आने दीजिए और कंप्यूटर पर मार्गदर्शन के लिए मैं हूं न!” उसका आग्रह भी था और आज्ञा भी. पहले नवभारत टाइम्स के पाठक पन्ना पर और फिर अपना ब्लॉग पर न सिर्फ़ रचनाएं सजने लगीं, अन्य पाठकों को साहित्य के नए-नए रूपों से नए-नए रूपों में जोड़ने के नवाचार का शौक भी पूरा होने लगा. इसी नवाचार के चलते अनेक सुखद मोड़ आते गए.
”आदरणीय बहिन जी, मैं तो अब अपना पेपर छोड़कर अपना ब्लॉग पर नहीं आ सकता, पर आप तो जय विजय पर भी लिख सकती हैं, कृपया साथ बनाए रखिए.” संपादक विजय सिंघल का सप्रेम अनुरोध भी था और विनम्र आग्रह भी.”
”विजय भाई, घर, नौकरी, अपना ब्लॉग के साथ जय विजय के लिए समय निकालना कहां संभव हो पाएगा!” इंकार की शायद यह एक और सीढ़ी थी.
”आप कुछ और मत कीजिए, बस जब अपना ब्लॉग पर रचना प्रकाशित करती हैं, जय विजय पर भी कर दीजिए. मैंने आपका अकाउंट बना दिया है, आज से आप हमारे साथ भी हैं.” इंकार कब इकरार बन गया था, पता ही नहीं चला.
एक के बाद एक सुखद मोड़ आते गए. ”सभी रचयिताओं को एक माला में पिरो दिया लीला बहन. बहुत अच्छे-से मंथन किया है सभी रचनाओं का.” गुरमेल भमरा के आशीर्वचन मिलते रहे.

सुदर्शन खन्ना की सुदर्शन प्रतिक्रियाएं हर मोड़ को सुखद बना देती हैं. यथा- ”मैं इन झांकियों को उनका नेतृत्व कर रही 18 स्टार्स से सम्मानित आदरणीय लीला दीदी से आरम्भ होकर वर्णन कर रहा हूँ. केसरी रंग की आभा लिए कभी भारत और कभी ऑस्ट्रेलिया की निवासी आदरणीय लीला जी की काव्यमय झांकी ‘सूर्य प्रभामंडल’ अनुपम दृश्य प्रस्तुत करती हुई जिसका सभी ने जोरदार अभिवादन किया है और तालियों से आकाश गूँज उठा है.”
रविंदर सूदन की ”इतनी अद्भुत अनुपम, अपूर्व, अनोखी, अनूठी, अद्वितीय, अकथ, अकथ्य, वर्णनातीत, अवर्णनीय, सदाबहार काव्यालय की संगोष्ठी—-” प्रतिक्रिया विशेषणों का शब्दकोश निर्मित कर देती है.

कुसुम सुराणा की प्रतिक्रिया ”मेहंदी की तरह ही आपके प्रयास हौले-हौले रंग जमाते हैं और सदाबहार काव्यालय के मंच को अपना बना लेते हैं” मदमस्त बना देती है.

इंद्रेश उनियाल की प्रतिक्रिया ”आपकी रचनाएँ ब्लॉगर भाई-बहनों को एक सूत्र में बाँधने का सफल प्रयास करती हैं और मंच को काव्यात्मक व साहित्यिक छटा प्रदान करती हैं.” प्रोत्साहन को भी प्रेरित कर देती है.

”आप की जादुई लेखनी को हमारा नमन” कहती हुई चंचल जैन की प्रतिक्रिया मन की चंचलता को भी स्थिर कर देती है, तो गौरव द्विवेदी की प्रतिक्रिया ”लघुकथा में आपकी अद्भुत चित्रकारिता उगते सूर्य की तरह प्रस्फुटित हो रही है.” सचमुच सूर्य को भी गौरवान्वित कर देती है.

अंत में रविंदर सूदन के शब्द-
”howdy की तरफ से 5 आउट ऑफ 5 के कुल 18 स्टार्स मिले हैं,
पाठकों ब्लॉगरों की और से तारीफों के लाखों हार मिले हैं
क्या लिखूँ तेरी कलम-ए-तारीफ में,
अल्फ़ाज़ के सुमन सितारों की तरह खिले हैं.”
इस रामकहानी का एक नया सुखद मोड़ था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “एक नया सुखद मोड़

  • लीला तिवानी

    लघुकथा मंच पर आरती राय की प्रतिक्रिया, सच में लेखनी थामते ही सुखद मोड़ एवं दिशायें अपने आप बनने लगी. बहुत बढिया लिखा दी. आप एवं इंदिरा दी हमारी प्रेरणा हैं.

    • लीला तिवानी

      प्रिय आरती जी, हम सब एक-दूसरे की प्रेरणा हैं.

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