पुस्तक समीक्षा

समीक्षा – जीना इसी का नाम है (आलेख-संग्रह)

समीक्ष्य कृति:- जीना इसी का नाम है (आलेख-संग्रह)
कृतिकार:- राजकुमार जैन ’’राजन’’
प्रथम संस्करण – 2020 ई0
मूल्य:- 200 रूपये
प्रकाशक:- अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
समीक्षक:- प्रो. शरद नारायण खरे

वैचारिकता से ही उत्कृष्ट समाज की संरचना होती है, तथा इसी से समाज को चेतना प्राप्त होती है। जीवन मूल्यों का प्रवाह जब दु्रतगति से होता है, तभी जिंदगी को नवीन आयाम प्राप्त होते हैं। बात सही ही है कि जीवन का निर्माण करने के लिए हमें एक उत्कृष्ट व मौलिक नजरिये की आवश्यकता होती है, और यह नजरिया प्रदान करने का काम साहित्य अति सफलतापूर्वक करता है।
देश के सुपरिचित कलमकार श्री राजकुमार जैन ’राजन’ के चिंतनपरक व उत्कृष्ट आलेखों का संग्रह ’’जीवन इसी का नाम है’’, प्रकाशित होकर निःसंदेह जीवन को एक नवीन आयाम प्रदान कर रहा है। कुशल साहित्यकार होने के साथ ही राजन जी एक प्रवीण संपादक भी हैं। वे मौलिकता, असाधरणता, प्रगतिशीलता, अनुशासन, सांस्कृतिक चेतना व मानवीय मूल्यों से अनुप्राणित लेखक-कवि हैं। उनके पास एक असाधारण सोच व दिव्यदृष्टि है इसीलिए उनके आलेखों मंे नैतिक मूल्यों, सामाजिक संसकारों, आंतरिक शुचिता, व्यक्तित्व निर्माण, सात्विकता, सकारात्मकता, राष्ट्रीयता, करूणा, परोपकार, चरित्र निर्माण, सत्यता, पुरूषार्थ, स्व-निर्माण अध्ययनशीलता, कर्मठता, सम्यक-चेतना, नारी-सम्मान, आत्मसंतोष, जिजीविषा, संघर्षशीलता आदि की समाहितता दृष्टिगोचर होती है।
यह वास्तविकता है, कि ’ हम सुधरेंगे – तो जग सुधरेगा’ और ’हम बदलेंगे-तो जग बदलेगा’ इसीलिए राजन जी अपने आलेखों में स्वनिर्माण पर बल देते हैं। वास्तव में, सजग व समर्थ साहित्यकार यही प्रयत्न करता है कि उसकी लेखनी चिंतनपरक बनकर सामाजिक चेतना की रचना करे, तथा समाज की दशा-दिशा को सकारात्मकता के साथ निर्धारित करे। निःसंदेह इस संग्रह के आलेख यही अभिनंदनीय कार्य सम्पन्न करते है।
कौन सरस्वती पुत्र नहीं चाहता कि वह एक उज्जवल आगत की रचना में सहायक बने, और विसंगतियों, विद्रूपताओं, नकारात्मकलाओं व विडंबनाओं के विरूद्ध अपनी लेखनी के माध्यम से अभियान छेडे़ ? समीक्ष्य कृति में शोधपरक ऐसे आलेख शामिल हैं जो आशावाद, जीवन्तता, मूल्यनिर्माण व जन-जागरूकता की दृष्टि से निश्चित रूप से अति सराहनीय हैं। इन आलेखों में विद्यमान वैचारिकता वास्तव में पाठक को बहुत कुछ सोचने समझने को विवश करती है। जब कलमकार गहन चिंतन में डूबकर सामाजिक सरोकारों का निर्वाह करता है, तब निश्चित ही वह अपने चिंतन के आधार पर समाज की दशा-दिशा निर्धारित करने की चेष्टा करता हैं, और तब वह और उसका कार्य सराहना की विषयवस्तु बन जाते हैं। राजकुमार जैन ’राजन’ जी के ये निबंध इसी श्रेणी के निबंध हैं। इनमें हमें संवेदना/परिपक्वता/अनुभवशीलता, गहन वैचारिकता/चिंतनशीलता व सकारात्मकता नजर आती है। यह कृति व कृतिकार दोनों ही व्यापक अर्थों में सराहनीय हैं।

— प्रो (डाॅ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com