कविता

लॉकडाउन

यह लोकडॉउन न होता
पिता पुत्र को भी बराबर लेटने का मौका न मिलता
बचपन में पुत्र खेलता है पिता की गोदी में
कभी खेलता उसके ऊपर बना उसे घोड़ा
यौवन के आते ही बचपन खो जाता है
पुत्र व्यस्त हो जाता अपने धंधे में
कर उसकी शादी पिता हो जाता निश्चिंत
पिता हो जाता निश्चिंत बेटा फंस जाता
धंधे गृहस्थी के चक्कर में
वंचित हो जाते पिता पुत्र बचपन वाले उस आंनद से
आज मेरा बेटा आकर मेरे बैड पर जब साथ में लेटा
अकस्मात हाथ मेरा लगा सिर उसका सहलाने
कितना सुखद लगा
वर्णन करना है उसका मुश्किल
आभास हुआ लेटा है आकर उसका बचपन
अभी पुत्र के पास हूं मैं पिछले ढाई महीने से
कहा मौका मिलता है सामान्य जिंदगी में ऐसा
एक साथ इतना समय बिताने का
कहा मिलता है ऐसा मौका बैठ बहू बेटे के साथ इक्कट्ठे
डायनिंग टेबल पर खाना खाने का

ब्रजेश

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020