राजनीति

मंदिरों से वसूली, मस्जिदों को मदद

तमिलनाडु सरकार ने 47 मंदिरों को CM राहत कोष में 10 करोड़ रुपए देने का आदेश दिया है। इसके विपरीत राज्य सरकार ने 16 अप्रैल को रमजान के महीने में प्रदेश की 2,895 मस्जिदों को 5,450 टन मुफ्त चावल वितर‌ित करने आदेश दिया था, ताकि रोजेदारों को परेशानी ना हो। वास्तव में मदिरों को ऐसा आदेश देने के पीछे तमिलनाडु सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति जिम्मेदार है। ऐसे समय में, अब मंदिर प्रशासन को सरकार के चंगुल से मुक्त कराने के लिए संघर्ष तेज हो रहा है , तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (HR and CE) जो कि मंदिरों के अर्थ व्यवस्था, निर्माण व संचालन देखती है, सरकार के अंतर्गत आती है, 47 मंदिरों को गरीबों की देखभाल करने के लिए निर्धारित राशि के अलावा CM राहत कोष में 10 करोड़ रुपए अतिरिक्त देने का निर्देश दिया है। जबकि ऐसा कोई दिशा निर्देश किसी मस्जिद को नही दिया, ना ही कोई मस्जिद या मजार का प्रबंधन ही सरकार के हाथ में है, हिन्दू समाज को इसका विरोध करना चाहिए, व अपने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के लिए आंदोलन करना चाहिए।
कई हिन्दू संगठन समय समय पर इसके लिए आंदोलन भी कर चुके है, अब भाजपा ने लगाईं मंदिरों में भोजन करवाने की स्वीकृति की गुहार, भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष एल मुरुगन ने शनिवार को अन्नाद्रमुक सरकार से गरीबों और साधुओं को भोजन कराने के लिए राज्य में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के रखरखाव वाले मंदिरों में अन्नदानम (भूखों को भोजन परोसना) फिर से शुरू करने का आग्रह किया। मुरुगन ने कहा कि सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लोगों की दलीलों का सम्मान किया है और रमज़ान के खाने के लिए मुफ्त चावल आवंटित किया है। वैसे तो देश के सभी राज्यों में बड़े मंदिरों का प्रबंधन समितियां देखती है, किन्तु तमिलनाडु में विशेष रूप से मंदिरों के लिए यह कानून नही बना। मंदिरों को जो स्वतंत्रता मिलना चाहिए थी वह नही मिली। आज कोरोना संकट जैसे भीषण काल में भी जब देश के कई बड़े मन्दिर दान कर रहे है, समाज को यह समझ आ रहा है कि मंदिरों में दिया गया दान लोगों के काम आता है, परन्तु तमिलनाडु में सरकारी नियंत्रण होने के कारण मंदिरों में दिया गया दान जबरन अन्य समुदाय को सुविधा के लिए खर्च किया जा रहा है।
तमिलनाडु सरकार के इस निर्देश की आलोचना की मुख्य वजह यह भी है कि इस प्रकार का निर्देश इसाई और मुस्लिम संस्थानों को नहीं दिया गया है, जिन्हें सालाना सरकारी अनुदान प्राप्त होते रहते हैं, जहां मंदिरों से बड़ी राशि वसूली जाती है वहीं इस सूची में एक भी मस्जिद या चर्च नही। तमिलनाडु सरकार की प्रणाली देखेंगे तो जानेंगे कि मंदिरों से ही इतना भेदभाव किया गया। मंदिरों से वसूली जाने वाली राशि इन मस्जिदों, मदरसों, चर्चों, कान्वेंट स्कूलों को षड्यंत्र पूर्वक दान कर दी जाती जिससे इनका परिमाप और बढ़े। धर्मान्तरण एक बड़ी समस्या तमिलनाडु में है, जिसका मुख्य कारण यही आर्थिक सहयोग ही के जिसके कारण मशीनरी फलफूल रही है। शासन प्रशासन में बैठे तत्व इन्हें पूरा सहयोग देते है। यह इस बात से सिद्ध होता है कि इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने रमजान के महीने में मस्जिदों में मुफ्त चावल वित‌रित करने के तमिलनाडु सरकार के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए याचिका को खारिज कर दिया था।
कोरोना संकट काल मे जहां देश के अधिकतर मन्दिर बन्द है, मस्जिदों को दी जाने वाली यह मदद मंदिरों से वसूलने का निर्णय कहाँ तक सही है ? किस प्रकार कोई बन्द मन्दिर इस राशि का भुगतान करेगा ? क्या यह सहयोग इसी प्रकार मस्जिदों से मिलता है ? इसका उत्तर तमिलनाडु सरकार नही दे सकेगी। क्योंकि सहयोग केवल मन्दिर ही करते आये है, वसूली केवल मंदिरों से की जाती है। तुष्टिकरण की इस राजनीति में लोगों की आवाज दबा दी जाती है।
HR और CE के नियंत्रण में हैं राज्य के 47 मंदिर, HR और CE के प्रधान सचिव के पनिंद्र रेड्डी ने मदुरै, पलानी, थिरुचेंदुर, तिरुतनी, तिरुवन्नमलई, रामेश्वरम, मयलापुर सहित 47 मंदिरों में उनके अधीन काम करने वाले सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे लॉकडाउन के कारण गरीबों को भोजन खिलाने की दिशा में सरप्लस फंड से 35 लाख रुपए का योगदान दें। अन्य मंदिरों को 15 लाख रुपए से 25 लाख रूपए तक की राशि देने के लिए निर्देशित किया गया है। सभी 47 मंदिरों को दस करोड़ के अधिशेष कोष को सीएम कोरोना रिलीफ फंड में स्थानांतरित करना है। निर्धन गरीबो की सहायता के लिए कोई ट्रस्ट बनाकर यह सहयोग हो सकता है, किन्तु यदि सीधे सीधे मस्जिदों को मदद की जाती है तो तमिलनाडु सरकार की मंशा पर प्रश्न चिन्ह खड़े होते है ? आखिर वोटबैंक और राजनिति में कितना नीचे जाएंगे ?
उल्लेखनीय है कि HR और CE तमिलनाडु में 36,612 मंदिरों का प्रबंधन करते हैं। ये संपन्न मंदिर अपने अधिशेष कोष से संरक्षण/ नवीकरण/बहाली करते हैं। लाखों पुजारी पूर्ण रूप से श्रद्दालुओं के दान पर निर्भर रहते हैं। कोरोना महामारी और देशव्यापी बंद के कारण अब वे असहाय हो चुके हैं और भुखमरी का सामना कर रहे हैं। इस पर तमिलनाडु राज्य सरकार ने उनकी मदद करने के बजाए अपनी तुष्टिकरण की राजनीति को साधने के लिए हिंदू मंदिरों की संपत्ति को निशाना बनाया है, क्या कसूर है पुजारियों का वे किस्से आशा करें ? मंदिरों का फंड सरकार अपने अधीन कर ले, पुजारियों व पंडितों की चिंता किसी को नही। इन सभी 36612 मंदिरों के लाखों पुजारी व पंडित भूखे व तंगहाली में जीवन जी रहे है, किन्तु हिन्दू समाज के दान का कोई भी अंश इन्हें प्राप्त नही हुआ। इसे सरकार व न्यायपालिका का अन्याय नही कहें तो और क्या कहेंगे ?
क्या दान मस्जिदों में बांटने के लिए दिया गया था, क्या दान चर्चो को मदद करने के लिए दिया गया था नही। हिन्दू समाज मंदिरों में केवल इसलिए दान करता है कि धर्म जीवित रहना चाहिए। धर्म व आस्था से जुड़े लोगों का निर्वहन होता रहे तो क्या मंदिरों के पुनर्निर्माण व मंदिरों पर आश्रित लोगों के भरण पोषण के अधिकार को छोड़कर दान की यह राशि मस्जिदों में चावल बांटने के लिए देना पाप नही है ? जबकि मन्दिर के श्रद्धालु इस बात से कभी सहमत नही होंगे कि उनके पुजारी भूखे मरें और उसी दान से कहीं और बिरयानी बने। मुस्लिमों में रमजान के पर्व की शुरुआत में ही, तमिलनाडु राज्य सरकार ने मुसलमानों को एक बड़ा लाभ देने की घोषणा की थी। दिवंगत सीएम जयललिता ने मुस्लिमों के दिलों और वोटों को जीतने के लिए इसे शुरू किया था। तमिलनाडु सरकार ने घोषणा की थी कि इस साल दलिया तैयार करने के लिए 2,895 मस्जिदों को 5,450 टन चावल दिया जाएगा, जो कि साधारण गणना के अनुसार 2,1,80,00,000 रुपए निकल आती है।
मुस्लिमों की तरह हिन्दुओं को नहीं मिलती है त्योहारों में कोई मदद
जबकि इसी प्रकार की कोई मदद या योजना चित्रा और अनादि महीनों के दौरान हिंदुओं के ग्राम देवताओं को प्रसाद तैयार करने के लिए नहीं दी जाती हैं। सभी लोग इस बात को जानते हैं कि लॉकडाउन के कारण मंदिरों में उत्सव रद्द कर दिए गए हैं लेकिन ऐसा लगता है कि हिंदू मंदिर के पैसे की कीमत पर मुसलमानों का तुष्टिकरण सरकार के लिए महत्वपूर्ण है। वर्तमान तमिलनाडु सरकार की नीति से लगता है कि वह हिंदू मंदिरों को पूरी तरह से निचोड़ने का प्रयत्न कर रही है। तमिलनाडु सरकार हिंदुओं के मंदिरों से हंडी संग्रह, प्रसाद, विभिन्न दर्शन टिकट, विशेष कार्यक्रम शुल्क, आदि के माध्यम से प्रतिवर्ष 3000 करोड़ रुपए से अधिक वसूल करती है, जबकि केवल 4-6 करोड़ रुपए रखरखाव के लिए दिए जाते हैं। बाकी 2,995 करोड़ रुपए सरकार के पास रहते हैं। वहीं, श्रीविल्लिपुथुर वैष्णवित मठ प्रमुख सदगोपा रामानुज जियार ने तमिलनाडु सरकार से मंदिर के पैसे को पुजारी और सेवकों को देने के लिए खर्च करने का आग्रह किया है। पुथिया तमीजगम के प्रमुख डॉ. कृष्णस्वामी ने सीएम से मंदिरों से प्राप्त 10 करोड़ रुपए की राशि वापस करने की अपील की है।
(हिन्दू जनजागृति समिति, तमिलनाडु के अनुसार)
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश