कविता

बैचेन दिल

तेरे लिये जो मेरी महोब्बत है
लबों पर लायी नही जा सकती
क्या करूँ मगर बैचेन दिल का
तुझे भूलने को तैयार ही नही
रात दिन का गम लिए बैठी हूँ
देखने को तुझे तरसती रहती हूँ
आँखे हर पल तुझे ढूंढती है
याद में तेरी बरसती रहती है
महोब्बत तेरी मुझे हासिल नही
तू गगन का चाँद में चाँदनी नही
जानती हूँ तुझे पा नही सकती
बैचेन दिल को मगर
समझा नही सकती
— गरिमा राकेश गौतम

गरिमा राकेश गौतम

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