लघुकथा

भाड़

”डॉक्टर साहब, कोई ऐसी दवा दे दीजिए, जिससे पति शराब पीकर चुपचाप सो जाएं या तो शराब छुड़वा दीजिए”. पति के नशे की आदत से परेशान पत्नि ने टेली मेडिसिन का सहारा लिया.

”क्या करते हैं आपके पति?”

”क्या करते हैं आपके पति? का क्या मतलब! शराब पीते हैं, गाली-गलौज करते हैं और मार-धाड़ करते हैं.” पत्नि की परेशानी मुखर थी.

”आप उनको प्रेम से बताइए-समझाइए कि मद्यपान अभिशाप है, यह समाज को बर्बाद करता है.”

”अभी तो हमें ही बर्बाद कर रहा है.” पत्नि ने बीच में ही बात काटते हुए कहा. ”प्रेम-प्यार से, दुलार-लताड़ से, सब तरह से समझा-समझाकर थक गई हूं, तभी आपसे बात की है.”

”नशे का सेवन करने वाले व्यक्ति को 30 से 45 दिन तक नशा न मिले तो उसमें डिटॉक्सिफिकेशन हो जाता है. लॉकडाउन में भी आपके पति का नशा नहीं छूटा?” डॉक्टर साहब और क्या कर सकते थे!

”छूटना क्या था, तब भी बड़े परेशान रहते थे और परेशान करते थे. कभी कहते थे सेनेटाइजर में भी अलकोहल है, मैं उसको ही पी लूंगा. बड़ी मुश्किल से मैंने सेनेटाइजर की शीशी को छुड़वाया और खाली कर दी. सुना था सेनेटाइजर पीने से एकाध की मौत भी हो गई थी.” पत्नि की व्यथा बरकरार थी.

”शराब की दुकानें खुलते ही बचे हुए रुपये लेकर ऐसे भागे, जैसे मुद्दत के बाद जेल से छूटे हों. कई घंटे भूखे-प्यासे खड़े रहकर एक बोतल जुटाने में सफल हो गए, उसके बाद इस तपस्या का सारा गुस्सा हम पर निकला.” डॉक्टर साहब सुनते रहे.

”हम तो उसे डीएडिक्शन के लिए भर्ती भी कर लेंगे, लेकिन इसमें भी वही लोग शराब छोड़ पाते हैं जो वास्तव में छोड़ना चाहते हैं. करीब 10 में से 2 लोग ही शराब छोड़ पाते हैं.” डॉक्टर साहब की अपनी व्यथा थी.

”शराब छोड़ पाने की इच्छा उत्पन्न करने की ही तो बात है, इतना तो आप कर ही सकते हैं!”

”टेली मेडिसिन वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग द्वारा चिकित्सा पद्धति है. हम परामर्श दे सकते हैं, मानना न मानना रोगी और उसके परिवार वालों पर निर्भर करता है.”

”डॉक्टर साहब, ठीक है आपको टेली मेडिसिन वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के 300 रुपये मिल गए. सरकार शराब की दुकानें खोलकर अपनी आमदनी बढ़ाती रहेगी, सोशल डिस्टेंसिंग की ऐसी-तैसी होती रहेगी, कोरोना बढ़ता रहेगा, सामाजिक संस्थाएं धरने देती रहेंगी और गांधी जयंती के दिन फिर मद्यपान निषेध दिवस मनाया जाता रहेगा, पिसना तो हम लोगों को ही है, बाकी समस्या जाए भाड़ में!” पहले से ही चुका हुआ पत्नि का धैर्य मानो जवाब दे गया था.

”कृपया आप तैश में न आएं. इस गंभीर समस्या को बड़े धैर्य से सुलझाना होगा. आप एक काम कर सकती हैं.” डॉक्टर साहब ने समस्या की गंभीरता को संभालने की कोशिश की, ”आप पति को डीएडिक्शन के लिए भर्ती करवा दीजिए. हम कोशिश करते हैं. कभी कभी चमत्कार हो भी जाते हैं, लेकिन उससे पहले आप समझा-बुझाकर, बच्चों का वास्ता देकर, उनका आत्मबल जगाकर उनको मन से शराब छोड़ने के लिए तैयार कीजिए. एक बार आत्मबल जागा, तो हर संकट भागा.”

”बहुत-बहुत शुक्रिया डॉक्टर साहब!” एक बार फिर पत्नि भाड़ फोड़ने के प्रयास के लिए तैयार थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “भाड़

  • लीला तिवानी

    इंग्लैंड से गुरमैल भाई का नुस्खा-
    ”कभी-कभी ख़ाक भी लाख का काम कर जाती है. यह नुस्खा भी है तो बचकाना, पर शायद कुछ काम आ जाए! जब आपके पति ने शराब न पी रखी हो तो उस के आगे घर के सभी गहने-रुपये रख कर कह दीजिए कि इनकी शराब ले आइए और हमारे लिए थोड़ा ज़हर भी. हम ज़हर खाकर मर जाएंगे और आप जेल में बैठे-बैठे आराम से शराब का शौक फरमाते रहिएगा.”

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