कविता

जागृति

अब छोड़ भरम पदचिन्हों का
अपनी तू कोई राह बना
जानी पहचानी क्या करना
कदमों के नए निशान बना,
क्या डरना इन अंगारों से
बुझे हुए इन खा़रों से
जला जोत हिम्मत की अब
परवाने की पहचान बना,
क्या डरना अब ॲंधियारों से
इन काली स्याह रातों से
मन के नन्हे दीपक को तू
आशा की उजली जोत बना,
आए जो बांधा राहों में
हिम्मत को तू तलवार बना
क्या डरना अब तूफानों से
बाजू अपनी पतवार बना।

— अमृता पान्डे

अमृता पान्डे

मैं हल्द्वानी, नैनीताल ,उत्तराखंड की निवासी हूं। 20 वर्षों तक शिक्षण कार्य करने के उपरांत अब लेखन कार्य कर रही हूं।