गीतिका/ग़ज़ल

पराया लगता है

महफ़िल में हर शक़्स पराया लगता है
ऐसे में फिर दिल भी किसका लगता है
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लोग जिसे कहते पागल दीवाना सा
हमको वो हालात का मारा लगता है
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चाँद सितारों की कर बैठा है चाहत
कभी कभी ये दिल बच्चा सा लगता है
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महका गुलशन और खिली है अमराई
ये मौसम भी आज सुहाना लगता है
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कभी नहीं तोड़ो विश्वास किसी का भी
इसे कमाने में इक अरसा लगता है
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कितनी उलझन है कितने जंजाल यहाँ
नज़रों से अब दूर किनारा लगता है
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रास न हमको आई ख़ुशी जमाने की
साथ गमों के गहरा नाता लगता है
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बेगानी सी लगती है दुनिया सारी
दिल में जब यादों का मेला लगता है

रमा प्रवीर वर्मा

रमा वर्मा

श्रीमती रमा वर्मा श्री प्रवीर वर्मा प्लाट नं. 13, आशीर्वाद नगर हुड्केश्वर रोड , रेखानील काम्प्लेक्स के पास नागपुर - 24 (महाराष्ट्र) दूरभाष – ७६२०७५२६०३