लघुकथा

व्यावहारिक

विवाह के लिए आए, अच्छे रिश्तों में भी कमियाँ निकल कर दिशा,मम्मी-पापा का मन दुखा देती थी।वह जब भी उसे समझने लगते।बेटी,तुम हर रिश्ते में कमी ही देखती हो।थोड़ा बहुत तो समझौता सभी को करना पड़ता है।
पापा,रिश्ता बराबर का होना चाहिए।क्या आप मुझें किसी ऐसे के पल्ले बाँध देना चाहते हैं?आप ही सोचिए कहाँ मैं पोस्ट ग्रेजुएट और कहाँ वो बारहवीं पास?पर बेटी उसके पास तो सरकारी नौकरी भी है।लड़का होशियार है।प्राइवेट पढ़ भी रहा है।दिशा भड़क उठी, पापा क्या अपने मुझें इसीलिए उच्च शिक्षा दिलवाई थी?बेटी शिक्षा तथा व्यावहारिक होना अलग-अलग बात है।हमें शिक्षा के साथ साथ व्यावहारिक ज्ञान भी होना चाहिए।सिर्फ शिक्षा के सहारे हम जीवन में आगे नही बड़ सकते।पापा पहले आप मुझें शिक्षा का महत्व दर्शाते रहते थे।अब आप मुझें नया ही ज्ञान दे रहे हैं।आखिर तुम समझ क्यों नहीं रही हो,कहकर पापा चुप हो गए?
दिशा,रमेश है तो क्लर्क ही।वह मेरा मुकाबला नहीं कर सकता।पापा को हार कर रिश्ते के लिए मना करना पड़ा।
समय गुजरता जा रहा था।कोई भी अच्छा रिश्ता नहीं मिल रहा था।दिशा का अच्छी नौकरी का सपना भी टूट गया था।बढ़ती उम्र भी आड़े आ रही थी।बड़े प्रयास के बाद उसे चपरासी की नौकरी मिली थी।वह मन मार कर नौकरी कर रही थी।कुछ दिन बाद उसे मैनेजर साहब ने बुलाया।वह यह देखकर हैरान रह गई थी कि उसका मैनेजर और कोई नही रमेश ही था।वह खुद पर बहुत शर्मिदा थी।वह अपने गलत फैसले पर बहुत पछता रही थी।आज उसे पापा के शब्द याद आ रहे थे कि इंसान को व्यावहारिक होना चाहिए।
राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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