लेख

अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस

आज जुलाई २० को अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस है सोचा इस विषय पर कुछ
लिखूं.
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए लोग बहुत सारे खेल जैसे क्रिकेट,फुटवाल,कुश्ती,बैडमिंटन,वालीवॉल आदि खेलते हैं जिससे शरीर स्वस्थ और हष्टपुष्ठ बनता है.अधिकतर इन खेलों में हमें शारीरिक बल लगाना पड़ता है.
शतरंज एक ऐसा खेल है जो शारीरिक बल से नहीं बल्कि दिमाग से खेला जाता है और धैर्य इसका प्रथम नियम है.जरा सी भी हड़बड़ी से हमनें इसे खेला तो कभी इस खेल को नहीं जीत पाएंगे.  इससे हमारे सोचने और तर्क शक्ति दोनों विकसित होती हैं
इस खेल को खेलने के लिए सिर्फ दो व्यक्तियों की आवश्यकता होती है
शतरंज को अंग्रेजी में ‘Chess’ कहते हैं .
‘Chess’ शब्द की उत्पत्ति ‘शाह’ शब्द से हुई . ‘शाह’ पर्शियन भाषा का शब्द है . शाह का अर्थ है ‘राजा’ . इसी शब्द से ‘बादशाह’ बना है .बादशाह का अर्थ ‘महाराजा’ है . शतरंज का जन्म भारत में हुआ .
शतरंज या चैस दो खिलाड़ियों के बीच खेला जाने वाला एक बौद्धिक एवं मनोरंजक खेल है .चतुरंग नाम के बुद्धि-शिरोमणि व्यक्ति ने पाँचवीं-छठी सदी में यह खेल संसार के बुद्धिजीवियों को भेंट में दिया.समझा जाता है कि यह खेल मूलतः भारत का आविष्कार है, जिसका प्राचीन नाम था- ‘चतुरंग’; जो भारत से अरब होते हुए यूरोप गया और फिर 15/16वीं सदी में पूरे संसार में लोकप्रिय और प्रसिद्ध हो गया.
शतरंज एक चौपट (बोर्ड) के ऊपर खेला जाता है. चौपट में कुल ६४ खाने या वर्ग बने होते है, जिसमें ३२ चौरस काले  और ३२ चौरस सफेद  रंग के होते है. खेलने वाले दोनों खिलाड़ी भी सामान्यतः काला और सफेद कहलाते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी के पास एक राजा, वजीर, दो ऊँट, दो घोडे, दो हाथी और आठ सैनिक होते है.बीच में राजा व वजीर रहता है.बाजू में ऊँट, उसके बाजू में घोड़े ओर अंतिम कतार में दो दो हाथी रहते है.उनकी अगली लाइन में आठ प्यादा या सैनिक रहते हैं.
चौपट रखते समय यह ध्यान दिया जाता है कि दोनों खिलाड़ियों के दायें तरफ का खाना सफेद  तथा वजीर के स्थान पर काला वजीर काले चौरस में व सफेद वजीर सफेद चौरस में होना चाहिये. खेल की शुरुआत हमेशा सफेद खिलाड़ी से की जाती है.
आमतौर पर यह खेल 10 से 60 मिनिट का होता है लेकिन टूर्नामेंट खेल 10 मिनिट से 6 घंटे का या इससे भी अधिक का हो सकता.
प्रसिद्ध बांग्ला फिल्मकार सत्यजीत रे ने शतरंज विषय पर मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी कहानी शतरंज के खिलाड़ी पर इस नाम से 1977 में एक फिल्म निर्देशित कि थी इसकी कहानी १८५६ के अवध नवाब वाजिद अली शाह के दो अमीरों के इर्द-गिर्द घूमती है. ये दोनों खिलाड़ी शतरंज खेलने में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें अपने शासन तथा परिवार की भी फ़िक्र नहीं रहती. इसी की पृष्ठभूमि में अंग्रेज़ों की सेना अवध पर चढ़ाई करती है.फिल्म का अंत अंग्रेज़ों के अवध पर अधिपत्य के बाद के एक दृश्य से होता है जिसमें दोनों खिलाड़ी शतरंज अपने पुराने देशी अंदाज की बजाय अंग्रेज़ी शैली में खेलने लगते हैं जिसमें राजा एक दूसरे के आमने सामने नहीं होते. इस फिल्म को फिल्मकारों तथा इतिहासकारों दोनों की समालोचना मिली थी. फ़िल्म को तीन फिल्मपेयर अवार्ड मिले थे जिसमें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी शामिल था. फिल्म के मुख्य कलाकार थे संजीव कुमार और अजमद खान.

हमारा जीवन भी शतरंज की चौपट या बोर्ड है और हम उसके मोहरे.अपने जीवन के खेल को भी हमें बहुत दिमाग और धीरज के साथ खेलना है तभी हम अपने जीवन को सफल और सार्थक बना पाएंगे

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020