कविता

प्रकृति ही है सर्वश्रेष्ठ

सुनो!
क्या बादलों की क्षमता असीमित है?
क्या सूर्य पर आवरण डाल
नकार सकते हो उसका अस्तित्व???
गाथायें तो उनकी भी नहीं लिखी गयीं….
जिन्होंने तमाम जीवन उत्सर्ग कर दिया…..
सुनो!
देखा है कभी असीमित शक्ति पुंज को….
देखा है कभी अलौकिक आभा वृंद को….
कुछ गेय तो कुछ ध्येय सी हैं वो रचनाएँ…..
जिनके रचनाकार का नहीं
कोई नाम, पहचान….
सुनो!
मिट्टी की मूरतों में सजी हुई छवियों को …..
बिन बोले, बिन कहे अपने अस्तित्व को उजागर करती हुई सी…..
तटबंधों से अवमुक्त हो करती हैं विकास…
न जाने कितनी हस्तियों का करती हैं   विनाश….
सुनो! आदि से ही सत्यमेव जयते ….वेदों ने गाया….
आदि से ही श्रमेव विजयते…पुराणों ने सुनाया….
सर्वाधिकार, सर्वश्रेष्ठ, सर्वव्यापी बस शब्द बनकर ही रह गये…
जानते हो क्यों??
प्रकृति सब कुछ छीन लेती है…
सुनो!
यह प्रकृति ही श्रेष्ठ है, सर्व श्रेष्ठ..
— सुषमा त्रिपाठी

सुषमा त्रिपाठी

शिक्षिका, गोरखपुर (उ.प्र.)