कविता

प्यार की लौ

ऐ हवाओं
रखना हिफाज़त
बुझने न देना
लौ मेरे प्यार की
बहुत कुछ
जलाया है मैंने
इसको जलाए
रखने के लिए
हाथ जले मेरे
हिफाज़त में इसकी
प्रचंड वेग को
सह सके यह तेरे
बुझने न पाए
जो जगाई है
लौ मैंने
बस इतनी
नियामत रखना
लौ से लौ जलती चले
कारवां यह प्यार का
यूं हीं बढ़ता चले
एक दिन तो
ऐसा आएगा
जरूर आयेगा
जगमगा उठेगा जब
मेरा यह चमन
दीप मालाओं से

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020