गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वो जो कुछ लोग राजदार रहे।
काम जब भी पड़ा फरार रहे।।
एक लम्हा खुशी का आया तो,
जिंदगीभर के ग़म तैयार रहें।।
जमाने की हवा लगी उसको,
मशविरे सब मेरे बेकार रहे।।
तेरी मर्ज़ी पे भला किसका हक,
तूं जिसे चाहे वो हकदार रहे।।
दीप तो एक ही रहा सूरज,
मगर तूफान बेशुमार रहे।।
— शेषमणि शर्मा “इलाहाबादी”

शेषमणि शर्मा 'इलाहाबादी'

जमुआ मेजा प्रयागराज उतर प्रदेश