कविता

वो इक्कीस दिन

कैसे भूल सकता हूं मैं
कर्फ्यू के वो इक्कीस दिन
जब हम घरों में कैद होकर रह गए ।
घर से बाहर तक
निकलने की पाबंदियों ने
उन इक्कीस दिनों
जीवन को असहय बनाने में
कोई कसर नहीं छोड़ी।
किस तरह हमारे परिवार ने
काटे एक-एक दिन,एक एक पल
कभी खाकर तो कभी
नमक पानी का घोल पीकर
और कभी भूखे रहकर ।
आज भी सोचता हूं तो
सिरहन सी होती है,
तब सिर्फ़ प्रार्थना ही निकलती है
हे प्रभु ! फिर ऐसे दिन
कभी मत दिखाना
भले ही प्राण ले लेना।
★ सुधीर श्रीवास्तव

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921