कविता

मैं विकलांग नहीं हूँ यार

मैं विकलांग नहीं हूँ यार

हिम्मत मेरी अटूट है
इरादे भी मजबूत है
चुनौतियों का मेरा संसार
मैं विकलांग नहीं हूँ यार

हर पल लड़ाई लड़ता हूं
मुश्किल मैं भी आगे बढ़ता हुं
मेहनत है मेरा हथियार
मैं विकलांग नहीं हूं यार

ना मांगू मैं किसी से कभी
भगवान पे आस मैं रखता हूं
काम मिले जो भी मुझे
दृढ़ निश्चय विश्वास से करता हूं

खुद्दारी मेरे रग रग में है
विश्वास मेरा हर रब में है
खुशियां का है मेरा विचार
मैं विकलांग नहीं हूं यार

जिनके पास है हर सुविधा
वह कुछ भी न करना चाहते हैं
अपने हर शौकों के लिए
मां बाप का दिल दुखाते हैं
सच कहूँ तो दोस्तो
वो विकलांग केहलाते हैं

आँखें मेरी कमजोर सही
होसला मेरा बुलंद है
हर मुश्किल मैं मेरे दोस्तों
मेरा परिवार भी मेरे संग है

विकलांगता शरीर से नहीं
सोच से अब यह होती है
हिम्मती है जिसके इरादे
जीत भी उसकी होती है

सब देते हैं अब मुझको प्यार
कोशिश करूं ना मानू हार
हर बार करूं मैं बाधा पार
मैं विकलांग नहीं हूं यार….

— कल्पेश कुमार वि.परमार

कल्पेश परमार

अध्यक्ष, “एक्सेसिबल वडोदरा” ( दिव्यन्ग्जानो के लिए गैर प्रॉफिट संगठन)