कविता

ख्वाब

ख्वाब को लेकर
जिन्दगी तरसती रही
तकदीर को कोसते
यूं ही जिन्दगी कटती रही
सपने भी सच होते हैं
लोगौं से कभी सुना था
लेकिन ख्वाब-ख्वाब ही रहा!
जिन्दगी यूं ही कट रही
गजब विडंवना जिन्दगी की
कोई तकदीर को दोष देते
कोई तकदीर पर नाज करता
कोई जारी ऱखता जंग
खव्वाबों को धरातल पर लाने को
ख्वाब सच भी होते हैं अगर
जारी रहे भागीरथी प्रयास !
—  शिवनन्दन सिंह 

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968