स्वास्थ्य

भाप स्नान

पूरे शरीर पर भाप लगाकर पसीना निकालने को भाप स्नान या वाष्प स्नान (स्पा) कहा जाता है। यह आयुर्वेद की स्वेदन क्रिया का आधुनिक रूप है। इसका उद्देश्य शरीर विशेषकर त्वचा और खून की सफाई करना है। इससे त्वचा के रोम छिद्र खुल जाते हैं और पसीने के रूप में शरीर की बहुत सी गन्दगी बाहर निकल जाती है। अतः इस क्रिया से सभी रोगों में लाभ होता है। मोटापा घटाने का भी यह अच्छा सहायक साधन है।

भाप स्नान के लिए प्रायः एक विशेष प्रकार का बाॅक्स बनवाया जाता है, जिसमें एक स्टूल पर मरीज सारे कपड़े उतारकर बैठ जाता है और बाॅक्स का ढक्कन बन्द कर देने पर केवल उसका गले से ऊपर का भाग बाॅक्स के बाहर रहता है, शेष भाग बाॅक्स में रहता है। भाप स्नान लेने से पहले एक गिलास शीतल जल पी लेना चाहिए और सिर पर ठंडे पानी में भिगोयी हुई तौलिया रखनी चाहिए। अब किसी प्रकार से बाॅक्स में भाप भेजी जाती है। जब यह भाप पूरे शरीर पर लगती है, तो शरीर गर्म हो जाता है और बहुत पसीना आता है। भाप स्नान लेते हुए भीतर ही भीतर शरीर की हल्की मालिश भी करते रहना चााहिए। आवश्यक समय तक भाप लगाने के बाद बाहर निकलकर ठंडे पानी से स्नान कर लिया जाता है। स्नान करते समय साबुन नहीं लगाना चाहिए।

भाप स्नान के लिए बाॅक्स की व्यवस्था सभी जगह नहीं हो सकती। परन्तु इसके बिना भी भाप स्नान लिया जा सकता है। इसके लिए प्लास्टिक या मोटे कपड़े का एक पेटीकोट के आकार का कवर बनवाया जाता है, जिसमें ऊपर नाड़ा पड़ा होता है। यह कवर इतना बड़ा होना चाहिए कि रोगी स्टूल पर बैठकर उससे चारों तरफ से पूरी तरह ढक जाये और उसका कुछ भाग जमीन से छूता रहे। नाड़ा खींचकर रोगी के गले पर धीरे से कस दिया जाता है। इससे नीचे का सारा शरीर बाॅक्स की तरह कवर में बंद हो जाता है। एक नली से भाप को उस कवर के अन्दर इस प्रकार पहुंचाया जाता है कि सीधे शरीर में न लगे, ताकि वह जले नहीं। शेष क्रिया बाॅक्स वाले स्नान की तरह होती है।

भाप या तो बिजली की केतली से बनाई जा सकती है या गैस के चूल्हे पर कुकर रखकर उसकी सीटी की जगह रबड़ की नली लगाकर भाप को बाॅक्स या कवर के अन्दर पहुंचाया जा सकता है। भाप स्नान लेने से बहुत पसीना निकलता है, जिससे शरीर की अच्छी सफाई हो जाती है। अधिक सफाई के लिए गीले तौलिये के टुकड़े से शरीर को अच्छी तरह रगड़ना चाहिए। भाप स्नान से खून की सफाई होती है, शरीर की फालतू चर्बी कम होती है और शरीर मजबूत होता है।

भाप स्नान सप्ताह में एक बार बेखटके लिया जा सकता है। आवश्यक होने पर दो बार भी ले सकते हैं। यदि भाप स्नान के अगले दिन शरीर पर सरसों के तेल की मालिश कर ली जाये, तो बहुत लाभ होता है।

— डाॅ विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com