गीत/नवगीत

दुनिया के बाजार में

जो चाहत हो, वह मिल जाता, दुनिया के बाजार में।
सम्बन्ध बने बाजार की वस्तु, होता हूँ बेजार मैं।।
सबका सबसे एक ही रिश्ता।
खाने में हों, काजू पिस्ता।
अपने स्वारथ पूरे हों तो,
राक्षस को कहते हैं फरिश्ता।
झूठ छल और कपट हैं रिश्ते, षड्यन्त्र भरा आचार में।
जो चाहत हो, वह मिल जाता, दुनिया के बाजार में।।
धन की खाक, बनी है चाहत।
प्रेम और विश्वास हैं आहत।
षड्यंत्रों में प्रेम मर गया,
शिकारी कभी, देता ना राहत।
अपना कहकर शिकार कर लिया, हम खोये थे विचार में।
जो चाहत हो, वह मिल जाता, दुनिया के बाजार में।।
थोड़ा सा विश्वास था चाहा।
घात करन की कला है आहा।
संबन्ध किए नीलाम कोर्ट में,
लुटे खड़े, हम हैं चैराहा।
धन की पुजारी, सब कुछ कीया, रहे महल हवादार में।
जो चाहत हो, वह मिल जाता, दुनिया के बाजार में।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)