राजनीति

आखिर किन्नरों को विजय मिली

कई वर्षों से चल रहे अदालत मे एक विवाद पर जब अहम़ फैसला सुना मुहर विजय की लगाई गयी तो उन सभी के चेहरे पर विजयी पताका देख खुशी का ठिकाना नहीं था सभी लोगों का।ये विवाद था किन्नरों और आम इंसान की हर क्षेत्र मे नियुक्ति(नौकरी) को जो लेकर था।जहां आम इंसान को तो हर क्षेत्र मे नौकरी मिल जाती है परंतु किन्नरों को नहीं मिल पाती उनके पूर्णतः विकास नहीं होने पर।परंतु इसमें उनकी कोई भी गलती नहीं है ये तो एक प्राकृतिक कमी है।फिर इनके साथ भेदभाव होना किसी भी तरीके से उचित नहीं है।जिस तरह आम इंसा की ख्वाहिश होती है,उनके दिल मे जज़्बा होता हे दिश के लिये कुछ कर गुज़रने का तो ठीक उसी तरह किन्नरों के भी जज़्बात होतें हैं ।उनके दिलों मे भी देश के प्रति सम्मान होता है।वो भी कुछ कर गुजरना चाहते हैं देश के लिये।तो उनके लिये संविधान मे पुलिस क्षेत्र मे या दूसरे क्षेत्रों मे जहाँ शारीरीक रुप से पूरी तरह सम्पूर्ण होना,स्वास्थ्य के प्रतिरुप पूरी तरह से स्वस्थ होना बहुत जरुरी है उस क्षेत्र मे किन्नरों की शारीरीक कमी को देखते हुए उन्हें नौकरी मे स्थान ना देना उचित भी नहीं था।ये कमी उन्होंने खुद अपने हाथ से तो बना के ना लाई है ये तो कुदरती है इसके लिये उन्हें दोषी मानते हुए अपने देश के प्रति सेवा जज़्बों से परे रखना उचित भी ना था।
    पटना के न्यायालय मे चल रहे इसी तरह के एक केस पर न्यायालय द्वारा असम फैसला सुनाते हुए कि किन्नरों को नौकरी के हर एक क्षेत्र मे प्रावधान देना बिल्कुल सही है।उन्हें समाज से अलग समझ उनकी कमी बताते हुए किसी भी तरीके से उचित नहीं है और ये कहते हुए जस्टिस ने जब किन्नरों संग न्याय करते हुए दस्तावेजों पर विजय की मुहर लगाई तो सबकी खुशी देखते ही बनती थी।वहीं न्यायालय परिसर मे ही किन्नरों द्वारा अपनी खुशी को दर्शाया गया। मिठाईयां बांटी गयी ढ़ोल बजाऐ।सच बहुत ही बेहतरीन फैसला न्यायालय द्वारा सुनाया गया जो,वो बहुत ही काबिले तारीफ़ भी है।सच आज बहुत ही खुशी हो रही हे मुझे भी क्यों कि मुझे ये लगता कि जैसे हम सभी आम इंसानों मे सोचने,समझने,खाने,पीने की शक्ति संग जज़्बात भी समाऐ होते हैं।ठीक उसी तरह किन्नर भी तो हाड़ मास से ही बना एक इंसान है उसमें भी सोचने,समझने, खाने,पीने की शक्ति हम आम इंसानों की तरह ही समाई है उसमें भी जज़्बात समाऐ हुए हैं,उसे भी दर्द होता है परंतु बस एक कमी के चलते उसे समाज से एक दम अलग कर दियख जाना कहां तक उचित है।उसे उन सुख सुविधाओं से अलग किया जाना जो सरकारी क्षेत्र मे सिर्फ़ आम इंसानों तक ही सीमित रखना क्या ये उचित था?तो जवाब हे बिल्कुल भी नहीं, किन्नरों को भी स्वतंत्र ख्यालों संग उनके अच्छे बुरे परिणामों पर खुद विचार करने और फैसले लेने का हक दिया जाना चाहिये।पुलिस की भर्ती मे या सेना की भर्ती मे शारीरीक गठन एक दम मजबूत होना चाहिये बिल्कुल सही बात,परंतु शरीर के सभी भाग जो की हर तरह की परेशानियां आने पर तुरंत मुश्तैदी के लिये तैयार हो जाऐं।तो ऐसा हर एक भाग किन्नरों का सही सलामत है जो मुश्तैदी और चौकसी मे काम आता है ।
      आज बहुत से ऐसे किन्नर हैं जो पढ़ लिख कर बहुत बड़ा इंसान बनना चाहते हैं।शिक्षा का महत्व क्या है ये आज हर कोई जानता है इसी शिक्षा के महत्व को समझते हुए किन्नर लोग भी पाठशालाओं के माध्यम से या सामाजिक कार्य क्षेत्र मे कार्य करनें वालों के योगदान से ही शिक्षा को ग्रहण कर रहें हैं,और बहुत सी प्रतियोगी परीक्षाओं मे भी भाग ले रहें हैं ताकि वो भी सरकारी नौकरी पाके एक बेहतरीन जिंदगी जी सकें।इसी के तहत जो कदम आदरणीय वीरा यादव जी ने किन्नरों की समस्याओं को समझते हुए उठाया और डटे रहे किन्नरों के लिये ही पुलिस क्षेत्र मे उनके लिये भी कि उन्हें आरक्षण मिल सके।आज उनका सपना साकार हुआ और विजय पताका संग किन्नरों को मिला आरक्षण पुलिस क्षेत्र मे भी काबिले तारीफ़ है।अब पुलिस क्षेत्र मे भी एक पदाधिकारी और 4 कांस्टेबल की सीट हर राज्य मे किन्नरों के लिये आरक्षित कर दी गयी है।साथ ही 14 दिसंबर 2020 को दायर की गयी याचिका मे भी आरक्षण सीट पर सहमति देते हुए मोहर लगाई गयी।ये एक अनोखी जीत है किन्नरों के लिये और मानवता की सीख देती हुई न्यायालय की न्याय पध्दति भी काबिले तारीफ़ है जिसकी गाथा युगों-युगों तक गाई जाऐगी।
— वीना आडवानी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित