कविता

वो गुब्बारा

वो गुब्बारा !!

फूलता भी था और

हवा में उड़ता भी था

हर किसी के दिल में

बसता भी था

कभी इधर तो कभी उधर

कभी थोड़ा ऊपर तो

कभी थोड़ा नीचे

हर तरफ दौड़ता भी था

पर एक शाम ऐसी आयी

कि हर तरफ

खामोशी ही खामोशी छायी

कुछ ऐसी रफ्तार आई

कि जिंदगी मौत में समायी

न गुब्बारा बचा था

न गुब्बारा वाला

बस चंद लहू के निशां

हर तरफ बिखरे पड़े थे

न कोई सुनने वाला था

न कोई देखने वाला

न गुब्बारा बचा था

न गुब्बारा वाला..

— के एम भाई

(साथियो, यह कविता कानपुर के उस मासूम गुब्बारा बेचने वाले बच्चे को समर्पित जिसे शौक और अय्यासी के नशे में धुंध रईसजादों ने अपनी बाईक से कुचल दिया |)

 

के.एम. भाई

सामाजिक कार्यकर्त्ता सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्यात्मक लेखन कई शीर्ष पत्रिकाओं में रचनाये प्रकाशित ( शुक्रवार, लमही, स्वतंत्र समाचार, दस्तक, न्यायिक आदि }| कानपुर, उत्तर प्रदेश सं. - 8756011826