लघुकथा

रिपोर्ट

रात साढ़े बारह बजे उस व्यक्ति ने डरते हुए थाना परिसर में प्रवेश किया। कोई संतरी नजर नहीं आया। अंदर कमरे में चार वर्दीधारी ताश खेल रहे थे। व्यक्ति ने हाथ जोड़ उनसे कहा- “हुजूर, स्टेशन रोड में अभी-अभी कुछ बदमाशों ने मेरे रूपये और मोबाइल छीन लिया।”

“छीन लिया तो हम क्या करें, हमसे पूछकर इतनी रात में निकले थे”- एक ने कहा।
“धर्मशाला समझ लिया है क्या ..(एक भद्दी गाली देते हुए) कुछ भी हुआ मुंह उठाकर चले आए थाना”- दूसरे ने ताश का पत्ता फेंकते हुए कहा।
“साहब, रिपोर्ट तो लिख लीजिए। यदि आप कोशिश करेंगे तो वह पकड़ा भी जाएगा”- उस व्यक्ति ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।
“कितना रूपया छीना है?”- तीसरे ने सवाल किया।
“सर, पांच हजार रूपया था और साथ में मोबाइल भी छीन लिया”- उस व्यक्ति ने कहा।
“अभी कुछ रूपया बचा है ?”- चौथे ने पूछा।
“नहीं सर, सब छीन लिया। एक भी पैसा नहीं छोड़ा”- बेचारगी से उस व्यक्ति ने कहा।
दूसरे सिपाही ने फिर गाली देते हुए कहा-“…..तुमको पता नहीं कि हमलोग मुफ्त में रिपोर्ट नहीं लिखते हैं।”
पहले सिपाही ने मामले को सुलझाते हुए उस व्यक्ति को सलाह दिया- “अभी जाओ, दिमाग खराब मत करो। रिपोर्ट लिखवानी हो तो कल सवेरे पांच सौ रूपया लेकर आ जाना।”
वह व्यक्ति निराश लौट गया। सुबह शहर के तमाम अखबारों में प्रमुखता से खबर छपी थी-
रात के साढ़े बारह बजे नए पुलिस अधीक्षक ने आम आदमी के वेश में नगर थाने का औचक निरीक्षण किया – चार पुलिसकर्मी सस्पेंड.
— विनोद प्रसाद

विनोद प्रसाद

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