कविता

कविता

नेह की बाती जो तूने जलाई

आंधी एक ऐसी अचानक आई
झटके से बुझा गई जलती बाती
ऐसा क्यों हुआ मेरे समझ न आई
गुस्ताख़ी क्या हुई हमसे ऐसी
जो मुहब्बत खुदा को रास न आई
खफा़ थे मुझ से तो कह के जाते
बताना भी जरूरी तुम्हें समझ न आई।
तुम बिन न दिन न रात समझ आई
मुस्कुराहट भी अधरो की जिन गई
लाख जतन किए तुझे भुलाने की
फिर भी भुला नहीं इक पल पाई
साथ जीने-मरने की थी कसमें खाई
न तुम निभा पाये,न मैं निभा पाई।
कोई शक्ति आ तुझे छिन ले  गई
मैं अशक्त होकर देखते रह गई
तन्हाई ही अब मेरी सहेली बन आई
मन की गांठें खोलूं तो आंखें भर आईं
मेरे लिए हर रात विरह की रात है
सुबह-सुबह तुम्हारी याद फिर आई।
— मंजु लता

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।