गीत/नवगीत

नारी

धरा – गगन तक राज करे जो , सबल वही तो है नारी …..
शक्ति की देवी है वही तो , न समझो उसे बेचारी …..

दिवस – रात वह खटती घर में , परिवार का पालन करे
कभी मुसीबत आये भी तो , वही तो ही हुँकार भरे
कभी नहीं थकती है वह तो , जैसे हो इच्छाधारी …..
शक्ति की देवी है वही तो , न समझो उसे बेचारी …..

शक्तिदायिनी , करे प्रेरित , सेवा करे जैसे भक्ति
हर फ़िक्र वह काँधे ले लेती , सभी सहने की है शक्ति
आँच न आने देती वह तो , हो जैसे जग अवतारी…..
शक्ति की देवी है वही तो , न समझो उसे बेचारी …..

कई रूप हैं उसके देखो , मातु , बहन पत्नी , बेटी
बढ़े सदा हर सदस्य आगे , दुआएँ सदा ही देती
परीक्षा कोई भी देती , किसी कदम न कभी हारी …..
शक्ति की देवी है वही तो , न समझो उसे बेचारी …..

शिक्षित नारी वही तो सुन लो , घर – संसार चलाती है
कोई भी आँख उठाये तो , रणचंडी बन जाती है
पैरों तले देती वह रौंद , बन कर सिंहनी – सी नारी …..
शक्ति की देवी है वही तो , न समझो उसे बेचारी …..

— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘