कविता

अभ्यागत है तू

अभ्यागत है तू रत्नवति का

आत्मज बना कर रखा है
अंतःकरण तेरी सुधा ,
बालुका ही तेरी काया है
साधन कर ले हुड़दंगी मन
कृतांत अवश्य ही आएगा
हरीप्रिया साधक उर तेरा…
कदाचित खनक’ मगज भरमाया है
मनोरथ जगदीश्वर सफल करें
जीवन उत्कृष्ट निस्तार हो
लिप्सा सदैव रहे यही… जो!
श्वसन क्रिया में धाम बनाया है
— स्वामी दास

स्वामी दास

कवि स्वामी दास (क़लम नाम) दीपक राणा एम. बी. ए. (इन्फोर्मेशन सिस्टम) स्वतंत्र कविता लेखन Email swami.kavi@yandex.com drana0127@gmail.com FB: https://www.facebook.com/kavidas.swami.58 Insta: https://www.instagram.com/kaviswami9080/ Twitter: https://twitter.com/kavi_swami