गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जिन्हें हम रुह दिये बैठे वही हमें रुलाऐ
हम तो समझे थे अपना और वफ़ा निभाऐ

इश्क को तो बस एक खेल ही समझते हैं
हम तो समझे वो हमें भी रूह से थे चाहे।।

बेजुबां हो गई है दर्द मे मेरी कलम देखो
हम तो हर शब्द मे थे सिर्फ़ उन्हें सजाऐ।।

कैसे जोड़गे भला टूटे दिल के टुकड़ो को
हम तो दिल मे तेरी ही सच तसवीर बसाऐ।।

अपनी जिंदगानी तुम्हें ही हम बस कहते थे
अपनी जिंदगानी को अब हम कैसे भुलाऐं।।

रोके रुकते नहीं आंखों के मेरे अब ये आंसू
वफा न मिली हमें इन आंसुओं को कैसे समझाऐं।।

— हेमंत सिंह कुशवाह

हेमंत सिंह कुशवाह

राज्य प्रभारी मध्यप्रदेश विकलांग बल मोबा. 9074481685