भाषा-साहित्य

मुसाफिर जी और साहित्य का पोस्टमार्टम

डॉ. मुसाफ़िर बैठा मेरे वरेण्य मित्र हैं, अग्रज भी । कई विषयों में एम.ए. हैं, उर्दू में भी । मेरी दृष्टि में हिंदी भाषाई, शैलीगत- नवचेष्टा, सुलेख और व्याकरणीय लिहाज़ से उस जैसा अभी सम्पूर्ण भारत में हिंदी के ज्ञाता नहीं हैं , हर मुलाक़ात पर उस अद्भुत जीव से मैं कुछ न कुछ सीखता हूँ।

‘हंस’ के महान संपादक मान्यवर राजेन्द्र यादव से मेरी कई मुलाकातें हुई हैं, हर मुलाक़ात में मैं श्री मुसाफ़िर जी के बारे में अवश्य चर्चा किया है । प्रत्येक भेंट में उनका कहना रहा— वे कैसे मुसाफ़िर हैं, जो अभीतक बैठे हैं ! सीधे अर्थ में यह वाक्यांश ‘नाम’ से जुड़ा लगता है, परंतु उनका यह कहना था- ऐसे व्यक्ति / लेखक को अपने लेखन के बूते पूरे भारत में नवविचारों को लेकर आग लगाने चाहिए।

सचमुच में आज उनके फेसबुक पर लगी आग देखी जा सकती है । उनके कई  आलेख दाँतों तले अँगुली चबाने को विवश करता है । उनकी कविता-संग्रह भी प्रकाशित है, परंतु यहां चर्चा संलग्न- दस्तावेज़ ”हिंदी दलित आत्मकथाओं में अभिव्यक्त क्रूर यथार्थ का संसार” की । जो श्री मुसाफ़िर बैठा के शोध- प्रबंध है और 2008 ई0 में पटना विश्वविद्यालय से इसपर उन्हें Ph.D. मिला।

ज्ञात  हो, हिंदी दलित आत्मकथा में Ph.D. प्राप्त करनेवाले पूरे भारत / हिंदी के पहले शोधार्थी हैं । मैं गौरवान्वित महसूस करता हूँ कि इस शोध-प्रबंध में मेरी भी चर्चा इसरूप में है—“सर्वथा अयोग्य सवर्ण सहकर्मी साम-दाम-दंड-भेद की जुगत भिड़ाकर नौकरी हथियाये , भी हम दलितों की प्रूव्ड प्रतिभा को स्वीकारना नहीं चाहता । अनधिकार नौकरी पाकर प्रतिभाशून्य सवर्ण भी अपने दर्प व जात्याभिमान के शिखर पर होता है।

इस बात की गवाही बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवम् उदीयमान आलोचक-विचारक सदानंद पाल के ‘हंस’ के ‘सत्ता , विमर्श और दलित’ विशेषांक में छपे सारगर्भित स्वानुभूतिपरक आलेख ‘ मेहतरानी बहन और चमारिन प्रेमिका’ के बहुविध प्रसंगों से होती है । इस लेख में सदानंद ने हमारी आपसदारी की एक बात लिखी है,जो मेरी वर्तमान नौकरी का ही भोगा हुआ सच है — ”मेरे एक वरिष्ठ मित्र श्री मुसाफ़िर बैठा ने अपने सहकर्मी मिश्र जी को कहा कि आज एक महापुरुष की जयंती है, तो सुनकर मिश्रपात हुआ- ‘क्या सुबह-सुबह आप अम्बेडकरवा के बारे में कहने लगे ?”

मुसाफ़िर जी यथार्थपरक रचना करने के जादूगर हैं । वे पारंपरिक-अवलम्बन को चेतनावृत्त के तत्वश: पहले प्रूव करते हैं, तब प्रैक्टिकल कर लिखते है । वे सत्यश: नृविज्ञानी है । श्री मुसाफ़िर जी ने मुझमें क्या देखा कि उन्होंने मुझे रमन मैगसायसाय अवार्ड में नामांकनार्थ अनुशंसा भी किया , जिनका जवाब RMA Foundation, मनीला से दिनांक – 05.05.2009 के सम्प्रति आया भी।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.