कविता

अन्यथा

संविधान की दुहाई भी दोगे
और देश के संविधान
कानून का
मजाक भी उड़ाओगे,
अपने लिए अलग
औरों के लिए अलग ढंग से
राग वैरागी गाओगे।
जब देश सबका
संविधान सबका
तब अलग अलग परिभाषा
भला कैसे गाओगे?
भाई को भाई से लड़ाकर
कौन सा सूकून पाओगे?
बेकार का लफड़ा
न पैदा करो यार,
संविधान किसी के बाप की
बपौती नहीं है लम्बरदार।
अच्छा है संविधान की
इज्ज़त करना सीख लो,
संविधान ने बिना भेदभाव
सबको समानता दी है
उसे हँसकर स्वीकार लो।
अन्यथा
खुद ही बहुत पछताओगे,
इतना कुछ जो मिला है
उससे भी वंचित हो जाओगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921