कविता

अगर तुम मिल गये

दहशतगर्दी की पर्याय बने
यदि तुम कभी मुझे मिल गये तो
मैं ये जरूर पूछूँगा
कि
आखिर तुम चाहते क्या हो?
तुम्हारी ख्वाहिश ,
तुम्हारी इच्छा क्या है?
बिना हाँड़ माँस के कोरोना जी
तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है?
सब कुछ साफ साफ कह दो
तुम्हारी सद्इच्छा क्या है?
आखिरकार हम मानवों से
इतना कुपित क्यों हो?
क्या कारण है?
जो हमारी जान के पीछे पड़े हो।
अथवा खुलकर मैदान में आओ
मायावी दुनियां से निकलकर
सामने तो आओ,
अपनी दुश्मनी का मकसद
स्पष्ट तो बताओ।
आमने सामने आकर
दो दो हाथ करो,
तुम भी अपनी औकात का
अहसास करो।
पता तो चले भला
कौन कितने पानी में है?
तुम भले ही हमारे नाश का
सपना संजोए बैठे हो,
हम भी तुम्हारे नाश की तैयारी में हैं।
तुम मिलते तो हम बता देते
शराफत से रहो तो
हम प्यार से तुम्हें रहने ही देते ।
काश ! तुम मिल जाते तो
हम तुम्हें समझा देते,
वसुधैव कुटुंबकम का पाठ
अच्छे से पढ़ा देते।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921