कविता

ये कैसा युग आया है ।

ये कैसा युग आया है ।
जिन्दगी सस्ती और मौत महंगी
हर तरफ बरबादी का साया है ।
घमंड और गुरूर टिकता नहीं,
वक्त ने सबको समझाया है ।
धन दौलत भी काम ना आया,
मौत का ऐसा ज़लजला छाया है ।
अपने अपनों से हुए है दूर,,
कैसा है ये समय का दस्तूर ,,
मिले तो मिले कैसे हैं हम मजबूर ।
ये समय ने हमको बतलाया है ।
उफ ! ये कैसा मजंर है जब ,,
लोगो ने राख और खाक होने को ,,
कतार लगाया है ।
ये कैसा अजब सा दौर आया है ।
नादानो वक्त ने ये पैगाम भिजवाया है,
ये जो धन दौलत तुमने कमाया है
ये सब यही रह जाना है ,
बस अच्छे ,कर्म और शोहरत अमर
कर जाना है ।।
— मृदुल शरण