ग़ज़ल
सबसे बड़ा इस देश का सम्मान हुआ है।
हिन्दू हुआ न कोई मुसलमान हुआ है।
मरकर के देखी ज़िंदगी इक बार तब कहीं,
पैदा मेरे भीतर नया इंसान हुआ है।
जीने के नाम की लगाके पर्ची मौत का,
घर में ही इकट्ठा सभी सामान हुआ है।
इज़्ज़त मिली, शुहरत मिली बख़्शी है शराफ़त,
रब का मेरे मुझपे यही अहसान हुआ है।
बढ़कर ख़ुदा से आज ये ख़ुद को समझ रहा,
इंसान को भी कैसा ये ग़ुमान हुआ है।
तासीर कैसी ‘जय’ तेरी हैरत की बात ये,
खुश दिखता है तू जब भी परेशान हुआ है।
— जयकृष्ण चाँडक ‘जय’