कविता

तुम्हें जीतना

तुम्हें जीतना
बहुत आसान था
पर तुम्हें
हारते हुए
नहीं देख सकती थी
इसलिए
चाहते हुए भी
कोशिश नही की
और खुद हार गई
क्योकि
तुम मुझे
हारते हुए देखना चाहते थे
और मैं
तुम्हारी खुशी
बस यही फरक है
तुम में
और मुझमें
तुम्हारी सोच
खुद पर केंद्रित रही
और मेरी
तुम पर
लेकिन अब
मेरे बर्दाश्त
और
हारने की क्षमता
दम तोड़ने लगी है
तुमसे हारते हारते
मैं
खुद से हार चुकी हूं
इसलिए
अब तुम
अपनी आदत बदल लो
और
मैं अपनी ।
— नमिता राकेश