कविता

गुरुवर

पतझड़ बन जाये बसंत
मिले प्रकाश, तम का हो जाये अंत
गुरुवर पाकर एक झलक सुहावनी
कठोर पाषाण पिघल बन जाए पानी
हमको दिया आपने ज्ञान तेज
घुमड़ता था भीतर अज्ञान वेग
ईश्वर से भी आगे गुरुवर
करें हृदय से बारंबार सदा आदर
हर प्रकार से हम तो थे नादान
कच्ची, गीली मिट्टी के समान
ठोक -पीटकर सुंदर घड़ा बनाया
कठिन परीक्षा लेकर हमें तपाया
विद्या का अमर दान दिया
हमको पशुता से मनुष्य बनाया
भले-बुरे का जग में आभास कराया
गुरुवर, हमको एक अलग पहचान दिलाया
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111