कहानी

दूसरी पारी

सज्जो की बीमारी की खबर सुनकर मन घबरा उठा। पता नहीं क्या हुआ होगा,मेरी प्यारी दीदी को?कई बार कहा था, रुई की फैक्ट्री में काम करना छोड़ दो।पर वह मेरी मानती कहाँ थी?वह मजबूर थी,उस पर पूरे घर की जिम्मेदारी थी।वह हम सभी भाई-बहनों में बड़ी थी।अब उनकी उम्र भी ढाल रही थी। चेहरे पर झुर्रियाँ साफ नजर आती थी। एक-दो बाल भी सफेद दिखाई देने लगे थे।
पर वह परिवार की जिम्मेदारियाँ सम्भाल रही थी। उसके चेहरे पर कोई निराशा नहीं थी।पिछले महीने भी उसे साँस आने में दिक्कत हो रही थी।बड़ी मुश्किल से दो दिन आराम किया था।डॉक्टर साहब ने भी बहुत समझाया था।सज्जो रुई की फैक्ट्री में जाना बंद कर दो।रुई तुम्हारे फेफड़ों पर असर डाल रही है।
कभी खुद को आईने में देखा है।वह खुद से कह रही थी,आईना देखे तो वर्षों हो गए,डॉक्टर साहब।आईना देख कर क्या करूँगी?अब मेरी उम्र आईना देखने की कहाँ रह गई है?एक जमाना था,जब भी मौका मिलता था। मैं आईने के सामने खड़ी हो जाती थी।घंटों खुद को निहारती रहती थी।अपनी तारीफ खुद ही किया करती थी।ऐसा लगता था जैसे आईना सुन रहा हो और खुश हो रहा हो।
जब मैं सोलह साल की थी,मस्त मौला थी।लहरा कर चलना, रोज आँखों में ढेर सारा काजल लगाना,खूब पाउडर लगाना।माँ हमेशा टोक देती थी।सज्जो पाउडर की क्या जरूरत है? तेरा रंग दूध जैसा सफेद है,आँखे मोटी-मोटी है।तेरी दादी रात में तुझें पुराना सूरमा लगाया करती थीं।
जो हमें हकीम साहब ने दिया था।कहते थे, इससे तुम्हारी आँखे चमकदार रहेगी।सच माँ! तुम हकीम साहब की बड़ी तारीफ करती हो।क्या माजरा है? माजरा खाक है,अड़ी भीड़ में हमारे काम आ जाते थे।पापा की तबीयत अचानक खराब हो गई थी।छह महीने तक इलाज किया था, हकीम साहब ने।बड़ी मुश्किल में थी,मैं पैसा-धेला भी नहीं देती थी।हकीम साहब ने खूब मदद की थी। तेरे पापा भी उन्हें बहुत मानते थे।हकीम साहब तेरे पापा से कहते थे,दवा दारू का धन्धा उनका पुश्तैनी था।वह बड़े से बड़ा मर्ज भी संभाल लेते था। बस परहेज कड़ा था।और तेरे पापा  शराब पीने से मानते नहीं थे।उस दिन उनकी तबियत ठीक थी।
पर तेरे पापा लगाए बिना मानते कहाँ थे? उस रात दवाई करवा कर लाए थे। फिर भी पता नहीं कहाँ छुपा कर रखी थी? अपनी दवाई, कौन सी दवाई?अरे पागल इन मर्दों की तो एक ही दवाई होती है। वह मिल जाए तो फिर घर-परिवार भाड़ में जाए।अच्छा माँ दारु की बात कर रही हो।और तुम क्या समझ ही रही हो।
परहेज उन्होंने किया नहीं,मुश्किल से ही चार-पाँच दिन निकल पाए थे।हाँ,माँ याद है घर में कितना बुरा हाल हो गया था?साँस भी नहीं ले पा रहे थे।उनके फेफड़े गल गए थे। दारू का यही तो ठिकाना है।फेफड़ों को अपना घर बना लेती है।फिर तो आदमी बस दिन ही नहीं गिनता रह जाता है।वही हुआ था, तेरे पापा के साथ भी।
हकीम साहब को तो पहले से ही पता था कि अब बीमारी कटनी बहुत मुश्किल है।पर मेरा मन रखने के लिए भरोसा दिलाते रहे। चिंता ना करो,जल्दी ठीक हो जाएंगे।उनकी दवा से चार-पाँच साल निकल गए थे।
माँ, हकीम साहब का लड़का ठीक नहीं है। जब देखो आँखे फाड़ कर देखता रहता है।किसी दिन उसकी आँखे ही नोच डालूंगी।अब ऐसा भी क्या हुआ?देखना कौन सा गलत हैं?तू छोटी-छोटी बातों पर नाराज मत हुआ कर।लड़का ठीक है मेरी बड़ी आवभगत करता है।चाची,चाची कहते उसका मुँह नहीं थकता।अच्छा खूब समझ रही हूँ,उसकी चाल। कैसी चाल, कोई चाल-वाल नहीं है?
माँ, तुम उसका पक्ष ले रही हो।क्यों ना लू उसका पक्ष,इतना समझदार है?बिल्कुल हकीम साहब पर गया।अच्छा तो हकीम साहब भी ऐसे ही दिल फेक थे।और दोनों ही एक साथ हँसी पड़ी थी।
दीदी को फोन कर के समझती हूँ। शायद मान जाए, हैं तो बड़ी जिद्दी।माँ तो चाहती थी, हकीम साहब के लड़के से शादी कर ले, पर दीदी जिद पर अड़ी रही।कहीं भी कर दे शादी,पर इससे नहीं।
माँ ने जोर देकर पूछा, तो बिलख कर रो पड़ी थी।मुझें नहीं पसंद उसकी हरकतें, खूब छेड़खानी करता है।गली-मोहल्ले की लड़कियों के साथ, कल ही लल्ली बता रही थी, हकीम साहब से दवाई लेने गई थी।हकीम साहब घर पर नहीं थे।अंदर बुला कर दबोच लिया था,हरामखोर ने।लली बहुत रोई थी,घर आकर।चुप कर सज्जो,लल्ली कोई दूध की धुली नहीं है। इसका कई लड़कों से लफड़ा चल रहा है। तुम्हें कैसे पता माँ?
मुझें हकीम साहब के लौंडे ने बताया था।वाह भई वाह! चोरी ऊपर से सीना-जोरी।चुप कर, वह मुझें सब बता देता है।कल  ही कह रहा था।चाची दूर रखा कर सज्जो को लल्ली से,ठीक नहीं है वह जबरदस्ती गले पड़ जाती है,किसी के भी।माँ तुम भी किसकी बातों में आ गई हो।ना सज्जो,मुझें तो उसकी बातों में बड़ी सच्चाई लगती है।ठीक है,माँ तुम सच्ची वह भी सच्चा।बस मैं ही झूठी हूँ।पर एक बात कह रही हूँ,मुझें तो वह बिल्कुल भी नहीं भाता।
दीदी अब तुम्हारी सेहत कैसी?छोटी सब ठीक है, तुम चिंता मत करो।घर आकर बात करूँगी।अच्छा दीदी जैसा तुम ठीक समझो। हे भगवान आपका बहुत शुक्रिया,सज्जो दीदी ठीक है!माँ के जाने के बाद भाई कहने से बाहर हो गया था। छोटा तो दारू पीने लगा था।वह किसी की बात नहीं मानता था। जब देखो उल्टे-सीधे जवाब देता है।उसे तो दीदी की भी शर्म नहीं है।दीदी भी अपना-सा मुँह लेकर रह जाती है।
उनका मन बड़ा दुःखता है। पर जवान भाई-बहन पर हाथ भी तो नहीं उठा सकती।इससे बड़े वाले भाई ने तो अपनी पसंद से शादी कर ली थीं।दीदी का बड़ा मन दुखा था। पर वह उसकी खुशी में ही खुश थी।जब भाभी ने घर से अलग होने का फैसला सुनाया तो हमारे पाँव तले से जमीन खिसक गई थी।पर क्या करती चुपचाप फैसला मान लिया था?और जमीन का टुकड़ा उसके नाम कर दिया था। दो कमरे बने थे उसमें,पक्का था। दीदी ने अपने खून पसीने की कमाई से बनाया था।
एक-एक चीज, चुन-चुन कर लगवाई थी।कहती थी जब मेरी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी तो बुढ़ापा,आराम से कटेगी बैठकर। पर उसे क्या पता था ऐसा दिन भी आएगा? डॉक्टर साहब को बुला लेती हूँ।साथ मिलकर बात करेंगें,शायद काम छोड़ने को मान जाए।घर आती ही होगी, जल्दी से चाय रख दूँ।दो चाय तो डॉक्टर साहब अकेले पीते हैं।पर दीदी को तो मीठी चाय चाहिए।कहती है जब तक होंठ चप-चप नहीं हुए तो क्या चाय पी?
मैं दोनों के विपरीत हूँ।मीठा कम हो या ज्यादा,सब चलता है। मुझें आते ही आवाज लगाएगी,छोटी आज सारा दिन घर में क्या किया?कुछ काम-धाम भी किया,या सारा दिन पुराने गाने ही सुनती रही हो।दीदी मुझें बहुत समझती थी,काम में मन लगाया कर।ऐसा नहीं था कि उन्हें गाने पसंद नहीं थे। रोज रात को सोते समय गुनगुनाते-गुनगुनाते ही सो जाती थी।रेडियो चलता रहता था।
पर उन्हें सुध कहाँ रहती थी। सारा दिन काम करके थक जाती थी। मालिक भी नहीं चाहता था कि वह काम बदले वह तीन-चार औरतों का काम निपटा देती थी।इतने सालों से एक ही जगह काम कर रही थी।मालिक को भी उन पूरा भरोसा हो गया था।
बस कोई मदद माँग ले,वह तैयार खड़ी रहती थी।मैं भी कहाँ खो गई थीं?छोटी,क्या अंदर आ सकता हूँ?आइए डॉक्टर साहब, क्या अभी सज्जो नहीं आई है? नहीं, फिर बोले आ जाओ मेरी बाहों में,मेरी जान अब तुम्हारे बिना नहीं रहा जाता और कितना इंतजार करवाओगी मुझें।क्या करूँ,दीदी से बात करने की हिम्मत नहीं पड़ती? छोटी क्या उन्हें दिखाई नहीं पड़ता? तुम जवान हो,तुम्हारी भी कुछ इच्छा होगी। दीदी, क्या बूढ़ी हो गई है? अरे उसकी छोड़ो वह तो अपनी जवानी बर्बाद कर रही है।जवानी एक बार निकल गई तो लौटकर नहीं आएगी।
छोटी अपने पीछे दीदी को देख कर चौक पड़ी।डॉक्टर सहाब भी एक दम शांत हो गए थे,चोरी पकड़ी जा चुकी थी। अच्छा तो यह सब चल रहा है मेरी पीठ पीछे। डॉक्टर साहब,अगर तुम भैया के दोस्त ना होते,पर छोटी का चेहरा देख कर चुप रह गई।बस इतना बता दो,क्या यह टाइमपास है?नहीं दीदी मैं आपसे बात करने ही वाली थी। पर हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। मेरे चले जाने के बाद तुम अकेली रह जाओगी।दीदी बहुत गुस्से में थी।तू मेरी चिंता मत कर। डॉक्टर साहब,क्या आप मेरी छोटी से प्यार हो,इस रिश्ते के लिए तैयार हो?हाँ,मैं तो कब से चाह रहा हूँ।ठीक है तो शादी की तैयारी करो। डॉक्टर सहाब तेजी से घर से बाहर निकल गए।
मेरी तो मुँह माँगी मुराद पूरी हो गई हो थी।छोटी का चेहरा भी खुशी से तमतमा रहा था।उसने आगे बढ़कर दीदी को गले लगा लिया था।ओह,दीदी आपने मेरे मन की इच्छा पूरी कर दी है। छोटी की आँखे खुशी से नाम थी।छोटी की शादी धूमधाम से हो गई।सभी सज्जो की तारीफ कर रहे थे। पर कहते हैं ना कि खुशियों के साथ दुख भी मुँह खोले खड़ा रहता है। छोटे भाई की किसी हत्या कर दी थी।जुआ खेलते समय खूब हाथापाई हुई थी। किसी ने चाकू आर-पार कर दिया था।सज्जो का रो-रोकर बुरा हाल था।वह खुद को ही पूछ रही थी कि समय रहते उसने भाई को सही राह पर लाने का प्रयास क्यों नहीं किया?
हाय इससे अच्छा तो भगवान मुझें उठा लेता!क्या मुझें ही सारे दुःख देखने के लिए—-? पर होनी को कौन टाल सकता हैं,जो होना था हो गया हैं?
वह घर में अकेली रह गई थी। कहने को छोटे भाई-बहन पड़ोस में ही रहते थे।पर वह अपनी गृहस्थी में खो गए थे। उन्हें कोई अहसास नहीं था कि सज्जो कैसी है?सज्जो की दिनचर्या ही बदल गई थी।सुबह दो घूंट चाय पी के वह फैक्ट्री चली जाती थी।शाम को भी दिन छिपे आती थी।अब कौन घर में उसका इंतजार कर रहा था?
पूरा घर सुनसान था।थक हार कर आती, मन में आता तो कुछ खा लेती।नहीं तो बिस्तर पर ढेर हो जाती।पर आँखों में नींद कहाँ थी।वह रात भर छत पर ही टक-टकी लगाए रहती थीं।शायद वहीं से कोई रास्ता निकाल जाए।इस अकेलेपन से छुटकारा मिल जाए। सुबह ही मालिक का फोन आया था।सज्जो आज जल्दी आ जाना।
मुझें बाहर जाना है। जी,कहकर उसने फोन रख दिया।और तैयार होने लगी।आईने के सामने वह खुद को देख कर डर गई। क्या मैं वही सज्जो हूँ।? वह खुद का चेहरा देखकर हैरान थी।आँखों के नीचे गड्ढे पड़ गए थे।चेहरे की गुलाबी रंगत भी गायब थी। सब कुछ मुरझा गया था। बालों में सफेदी भी बढ़ गई थी।
कहते हैं, आईना कभी झूठ नहीं बोलता।वह खुद से बोली, झूठ बोलता है,आईना।मैं आज भी वही गुलाबी रगत वाली सज्जो हूँ।जरूर कुछ चीजें जीवन में अच्छी नहीं रही। मैंने बहुत कुछ खो दिया है।पर मेरी उमंग आज भी जिंदा है। मैं हार नहीं सकती,आगे बढ़ना ही जीवन है।अब मुझ पर किसी जिम्मेदारी का बोझ नहीं।
वह बहुत हल्का महसूस कर रही थी। वह खुद से कह रही थी। जिंदगी की दूसरी पारी के लिए अभी  देर नहीं हुई है। अभी बत्तीस साल की हूँ।हाँ-हाँ सज्जो तुम दूसरी पारी की शुरुआत करो।मैं तुम्हारे साथ हूँ,जैसे उसे आईना ही कह रहा हो।दूसरा पारी,क्योंकि आईना कभी झूठ नहीं बोलता? वह घर से निकल पड़ी दूसरी पारी की शुरुआत करने के लिए।

राकेश कुमार तगाला

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