कविता

मेहरबानी

आइये! हम भी मेहरबानियों का
हिसाब चुकाते हैं,
अपने माँ बाप को
बुढ़ापे में उन्हें सहारा देकर
हमें पैदा कर माँ बाप बनने
पाल पोसकर बड़ा करने
लायकदार बनाने का कर्ज
मेहरबानियों से चुकाते हैं।
बेटा बेटी होने की
पूरी औपचारिकता निभाते हैं,
अपनी औलादों को मेहरबानियों का
अभी से अभ्यास कराते हैं,
घमंड में चूर होकर
रिश्तों की औपचारिकता निभाते हैं,
रिश्तों को मेहरबानियों के
बोझ तले अच्छे से दबाते हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921