कविता

मानवता श्रेष्ठ धर्म

मानव हैं तो मानवीय संवेदना भी
अपने में जागृति रखिए,
मानवता के धर्म का सदा ही
खुद अनुपालन कीजिए ।
इस जहाँ में मानवता से
श्रेष्ठ कोई धर्म नहीं है,
इस श्रेष्ठ धर्म का मान, सम्मान
आप खुद बचाकर रखिए।
कौन क्या है, कैसा और क्यों है?
इस चक्कर में उलझकर
अपना मानव धर्म तो मत भूलिए।
संसार में तरह तरह के लोग
तो रोज मिलते ही रहेंगे ,
मानवता का खून भी
कुछ लोग तो करते ही रहेंगे।
अरे ये कैसी मूर्खता है
आप औरों की मिसाल
जीवन में उतराते हो,
क्यों नहीं खुद मिसाल बन
नयी राह बनाते हो।
मानवता के धर्म पथ पर
एक बार आगे तो बढ़ो,
मान, सम्मान सूकून ही नहीं
दुनियां, समाज के लिए
नयी मिसाल तो गढ़ो।
मानवता ही धर्म श्रेष्ठ है
इसकी स्वयं तहरीर लिखो,
मानवता के धर्म की श्रेष्ठता का
तुम नया इतिहास तो लिखो।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921