कविता

नशा उजाड़े घर परिवार

नशा उजाड़े घर परिवार
नशे का जो भी हुआ शिकार
नशे में बिखरे उनका संसार
लुट जाता है घर  संसार
मिहनत की कमाई वो लुटाता
दारू के चरणों में जा चढ़ाता
पीकर शराब गिरा नाली में
रोटी नहीं दिखता थाली में
बच्चा बिलखे भूख से जार जार
शराबी पिता को नहीं कोई ठार
बीबी देख रही है पति की राहें
झोला में कमा कर शौहर ऑटा लाये
घर आता जब कोई शराबी
खाली हाथ आता खाये तब गाली
बच्चे करते नफरत पिता से
शराबी बेखबर है इन बातों से
नशे का जो भी हुआ है शिकार
टुटा उजड़ा उनका हँसता घर बार

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088