कविता

बहती रहे उम्मीदों की धारा

बहती रहे उम्मीदों की धारा
जब तक ना मिल जाये किनारा
दरिया की भँवर जब जब डराये
मंजिल पाये चैन कब आये

बहती रहे उम्मीदों की धारा
आशा बनी जीवन का सहारा
हार ना मानना अय जीवन तूँ
किश्ती ले चल बीच मंझधारा

बहती रहे उम्मीदों की धारा
लेकर ही रहूँगा मंजिल हमारा
सपने जो मन ने है सजाया
पूरा करना हे प्रभु तुँ हमारा

बहती रहे उम्मीदों की धारा
कदम ना रोक पायेगा चौबारा
रौशन होगा अरमान अब सारा
चलते चल मिल जायेगा किनारा

बहती रहे उम्मीदों की धारा
फलीभूत होगा सोंच हमारा
परिस्थिति चाहे विपरीत हो सारा
लगनशील हो जब संघर्ष हमारा

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088